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________________ ३४८ उत्तराध्ययन सूत्र - छतीसवाँ अध्ययन - अत्यन्त तीक्ष्ण शस्त्र से भी जिसका छेदन-भेदन नहीं किया जा सके उसको सिद्ध (केवलज्ञानी) परमाणु कहते हैं। वह सब प्रमाणों का आदि (प्रारम्भ) कारण है। जैसा कि कहा है कारणमेव तदन्त्यं, सूक्ष्म नित्यश्च भवति परमाणुः। एकरसवर्णगन्धो, द्विस्पर्शः कार्यलिङ्गश्च॥१॥ अर्थ - परमाणु सब स्कन्धों का अन्तिम कारण है। यह सूक्ष्म और नित्य है। इसमें एक रस, एक वर्ण, एक गंध एवं दो स्पर्श पाये जाते हैं। परमाणुओं से स्कन्ध बनते हैं। परमाणु स्कन्धों का कारण है और स्कन्ध परमाणुओं का कार्य है। इस स्कन्ध रूप कार्य से परमाणु का ज्ञान होता है। इसलिए सब स्कन्धों का अन्तिम कारण परमाणु. है। सुहमा सव्वलोगम्मि, लोगदेसे य बायरा। इत्तो कालविभागं तु, तेसिं वुच्छं चउव्विहं॥१२॥ कठिन शब्दार्थ - सुहमा - सूक्ष्म, सव्वलोगम्मि - समस्त लोक में, लोगदेसे - लोक के एक देश में, बायरा - बादर, कालविभागं - कालविभाग, वुच्छं- कहंगा। .. भावार्थ - सूक्ष्म समस्त लोक में है और बादर लोक के एक देश में हैं, इसके आगे उनका चार प्रकार का कालविभाग कहूँगा। विवेचन - टीकावाली प्रति में तथा जम्बूविजयजी वाली प्रति में ग्यारहवीं गाथा के छह चरण दिये हैं अर्थात् डेढ गाथा दी है, वह इस प्रकार है - एगत्तेण पुठुत्तेणं, खंधा य परमाणु या लोएगदेसे लोए य, भइयव्वा ते उ खित्तओ। एत्तो कालविभागं तु, तेसिं तुच्छं चउव्विहं॥११॥ स्वाध्याय माला में - 'सुटुमा सव्वलोगम्मि, लोगदेसे य बायरा।' लिखा है किन्तु इतना अंश उपरोक्त दोनों प्रतियों में तथा श्री मधुकर जी वाली तथा पूज्य घासीलालजी म. सा. वाली प्रति में भी उपरोक्त पाठ नहीं है तथा टीकाकार ने भी इसका अर्थ नहीं किया क्योंकि जब मूल ही नहीं दिया है तो अर्थ देवे ही कैसे? संतई पप्प तेऽणाइ, अपज्जवसिया वि य। ठिइं पडुच्च साइया, सपजवसिया वि य॥१३॥ कठिन शब्दार्थ - ठिई - स्थिति, पडुच्च - प्रतीत्य-अपेक्षा, सपज्जवसिया - सपर्यवसित। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004181
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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