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उत्तराध्ययन सूत्र - बत्तीसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 अनेक प्रकार के स्पर्शों में तीव्र गृद्धि-आसक्ति रखता है वह अकाल में ही विनाश-मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।
जो यावि दोसं समवेड तिव्वं, तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं। दुइंतदोसेण सएण जंतू, ण किंचि फासं अवरुज्झइ से॥७७॥
भावार्थ - जो जीव अमनोज्ञ स्पर्श में तीव्र द्वेष को प्राप्त होता है, वह प्राणी अपने ही महान् - दुर्दान्त दोष से उसी क्षण में दुःख को प्राप्त होता है। इसमें स्पर्श का कुछ भी अपराध नहीं है किन्तु वह जीव अपने ही दोष से स्वयं दुःखी होता है।
एगंतरत्ते रुइरंसि फासे, अतालिसे से कुणइ पओसं। दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले, ण लिप्पइ तेण मुणी विरागो॥७॥
भावार्थ - जो जीव मनोज्ञ स्पर्श में अत्यन्त अनुरक्त होता है और अमनोज्ञ स्पर्श में प्रद्वेष करता है, वह बाल-अज्ञानी जीव अत्यन्त दुःख एवं पीड़ा को प्राप्त होता है किन्तु वीतराग मुनि उस दुःख से लिप्त नहीं होता है।
फासाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरे हिंसइ णेगरूवे। चित्तेहि ते परितावेइ बाले, पीलेइ अत्तद्वगुरु किलिट्टे॥७॥
कठिन शब्दार्थ - फासाणुगासाणुगए - स्पर्शानुगाशानुगत - स्पर्श की आशा से उसका अनुसरण करने वाला। ___भावार्थ - स्पर्शानुगाशानुगत - स्पर्श की आशा से उसका अनुसरण करने वाला अर्थात् स्पर्श की असक्ति में फंसा हुआ जीव अनेक प्रकार के चराचर - त्रस और स्थावर प्राणियों की हिंसा करता है और वह बाल-अज्ञानी जीव उन जीवों को अनेक प्रकार से परिताप उपजाता है। अपने ही स्वार्थ में तल्लीन बना हुआ वह क्लिष्ट-कुटिल जीव अनेक जीवों को पीड़ित करता है।
फासाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खण-सण्णियोगे। वए वियोगे य कहं सुहं से, संभोग-काले य अतित्तिलाभे॥०॥ कठिन शब्दार्थ - फासाणुवाएण - स्पर्शानुपात।
भावार्थ - स्पर्शानुपात - स्पर्श के विषय में आसक्त एवं परिग्रह से मूर्छित बने हुए जीव को उस स्पर्शादि युक्त पदार्थ को उत्पन्न करने में और उसकी रक्षा करने में सम्यक् प्रकार से
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