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उत्तराध्ययन सूत्र - बत्तीसवाँ अध्ययन COMMONOCONOMMONOMOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOD
रागो य दोसो वि य कम्मबीयं, कम्मं च मोहप्पभवं वयंति। कम्मं च जाइमरणस्स मूलं, दुक्खं च जाइमरणं वयंति॥७॥
कठिन शब्दार्थ - रागो य दोसो - राग और द्वेष, कम्मबीयं - कर्मों के बीज, कम्मकर्म, मोहप्पभवं - मोह से उत्पन्न होते हैं, वयंति - कहते हैं, जाइमरणस्स - जाति (जन्म) मरण का।
भावार्थ - राग और द्वेष, ये दोनों ही कर्मों के बीज रूप हैं। कर्म मोह से उत्पन्न होते हैं ऐसा ज्ञानी पुरुष कहते हैं। कर्म ही जाति (जन्म) मरण का मूल कारण है और जन्म-मरण ही दुःख है, ऐसा ज्ञानी पुरुष कहते हैं।
विवेचन - जन्म मरण ही दुःख है, यही बात १९ वें अध्ययन में भी कही गयी है यथा- . जम्म दुक्खं जरा दुवखं, रोगाणि मरणाणि या
अहो दुक्खो हु संसारो, जत्थ कीसंति जंतवो॥१६॥ .. जन्म दुःख है, बुढ़ापा दुःख है, रोग दुःख है और मरण दुःख है। संसार के सभी प्राणी . इन दुःखों से दुःखी हो रहे हैं। वास्तव में इन सब दुःखों का मूल कारण जन्म है। जिसका जन्म होता है उसी को मरण, रोग और व्याधि होती है। अतः ज्ञानी पुरुष फरमाते हैं कि - जन्म की ही जड़ उखाड़ देनी चाहिए। इसी जिनवाणी का अनुसरण करते हुए किसी ने कहा है -
मृत्यु से क्यों डसत है, मृत्यु छोड़त नाय। अ जन्मा मरता नहीं, कर यत्न नहीं जन्माय॥ दुक्खं हयं जस्स ण होइ मोहो, मोहो हओ जस्स ण होइ तण्हा।
तण्हा हया जस्स होइ लोहो, लोहो हओ जस्स ण किंचणाई॥८॥ __कठि शब्दार्थ - दुक्खं - दुःख, हयं - हत-नष्ट हो गया, लोहो - लोभ, ण किंचणाईआसक्ति आदि नहीं होती।
भावार्थ - जिसके मोह नहीं है उसका दुःख हत-नष्ट हो गया। जिसका मोह हत-नष्ट हो गया उसके तृष्णा नहीं होती, जिसकी तृष्णा हत-नष्ट हो गई उसे लोभ नहीं होता और जिसका लोभ हत-नष्ट हो गया, उसके लिए आसक्ति आदि कुछ नहीं होती (उसके लिए सब पाप नष्ट हो गये) ऐसा समझना चाहिए।
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