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उत्तराध्ययन सूत्र - इकत्तीसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
पच्चीसवां-छब्बीसवां बोल पणवीस-भावणासु, उद्देसेसु दसाइणं। जे भिक्खु जयइ णिच्चं, से ण अच्छइ मंडले॥१७॥
कठिन शब्दार्थ - पणवीस-भावणासु - पच्चीस भावनाओं में, दसाइणं - दशाश्रुतस्कंध आदि के, उद्देसेसु - उद्देशों में।
भावार्थ - जो साधु सदा पाँच महाव्रत की पच्चीस भावनाओं में उपयोग रखता है और दशाश्रुतस्कन्ध आदि के छब्बीस उद्देशों का (दशांश्रुतस्कन्ध के दस, बृहत्कल्प के छह और व्यवहार सूत्र के दस कुल मिला कर छब्बीस अध्ययनों का) सम्यक् अध्ययन कर के प्ररूपणा करता है, वह मण्डल (संसार) में परिभ्रमण नहीं करता है।
विवेचन - प्रत्येक महाव्रत की ५-५ के हिसाब से पांच महाव्रतों की पच्चीस भावनाएं होती हैं। आचारांग सूत्र २/१५, समवायांग सूत्र समवाय २५ और प्रश्नव्याकरण सूत्र के पांच . संवर द्वार में इन भावनाओं का विशद वर्णन है।
दशाश्रुतस्कंध के १०, बृहत्कल्प के ६ और व्यवहार सूत्र के १० उद्देशक, ये सब मिला कर २६ उद्देशक होते हैं।
. सत्ताईसवां-अट्ठाईसवां बोल . अणगार-गुणेहिं च, पगप्पम्मि तहेव य। जे भिक्खू जयइ णिच्चं, से ण अच्छइ मंडले॥१८॥ कठिन शब्दार्थ - अणगार-गुणेहिं - अनगार गुणों में, पगप्पम्मि - प्रकल्प में।
भावार्थ - जो साधु सदा साधु के सत्ताईस गुणों को धारण करता है और अट्ठाईस प्रकार के आचारप्रकल्पों में [आचारांग सूत्र के दोनों श्रुतस्कन्धों के 'सत्थपरिण्णा' आदि पच्चीस अध्ययन और निशीथ सूत्र के तीन १. उद्घातिक (लघुमासिक, लघु चौमासी, लघु छहमासी) २. अनुद्घातिक (गुरुमासिक, गुरु चौमासी, गुरु छहमासी) ३. आरोपणा इन २८ अध्ययनों में] सदा उपयोग रखता है, वह मण्डल (संसार) में परिभ्रमण नहीं करता है।
विवेचन - आचार-चारित्राचार तथा प्रकल्प-मर्यादा। जिस शास्त्र में साधु के चारित्र पालन की मर्यादा बतलाई गई हो, उसे आचार-प्रकल्प कहते हैं। साधु के चारित्राचार पालन की
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