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________________ उत्तराध्ययन सूत्र - इकत्तीसवाँ अध्ययन पहला बोल एगओ विरइं कुज्जा, एगओ य पवत्तणं । असंजमे णियत्तिं च, संजमे य पवत्तणं ॥ २ ॥ २५० कठिन शब्दार्थ - एगओ - एक से, विरइं विरति - निवृत्ति, कुज्जा करे, पवत्तणं प्रवृत्ति, असंजमे - असंयम से, णियत्तिं निवृत्ति करे, संजमे - संयम से । भावार्थ एक से विरति - निवृत्ति से निवृत्ति करे और संयम में प्रवर्तन प्रवृत्ति करे । विवेचन - चरणविधि का प्रथम बोल है - असंयम से निवृत्ति और संयम में प्रवृत्ति । हिंसा, असत्य आदि असंयम कारक बातों से निवृत्ति और अहिंसा, सत्य आदि संयम कारक बातों में प्रवृत्ति ही चरणविधि है । Jain Education International - करे और एक ओर प्रवर्तन प्रवृत्ति करे अर्थात् असंयम दूसरा बोल रागदोसे य दो पावे, पावकम्म - पवत्तणे । जे भिक्खू भइ णिच्चं, से ण अच्छइ मंडले ॥ ३ ॥ कठिन शब्दार्थ - पावकम्मपवत्तणे पाप कर्मों के प्रवर्तक होने से, रुंभइ निरोध करता - रोकता है, णिच्चं नित्य, से- वह, ण अच्छइ - परिभ्रमण नहीं करता, मंडले मण्डल - संसार में। भावार्थ - पाप कर्म में प्रवृत्ति कराने वाले राग और द्वेष ये दो पाप हैं, जो साधु सदा इन्हें रोकता है, वह मण्डल (संसार) में परिभ्रमण नहीं करता है। विवेचन - पापकर्म बंध के प्रमुख कारण हैं। वीतरागता में प्रवृत्ति चारित्रविधि है । - राग और द्वेष । राग-द्वेष से निवृत्ति और w - - तीसरा बोल दंडाणं गारवाणं च, सल्लाणं च तियं तियं । जे भिक्खू चयइ णिच्चं, से ण अच्छइ मंडले ॥ ४ ॥ कठिन शब्दार्थ - दंडाणं दण्डों, गारवाणं - गारवों-गौरवों, सल्लाणं - शल्यों, तिथं - तीन, चयइ त्याग करता है। For Personal & Private Use Only - · www.jainelibrary.org
SR No.004181
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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