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तपोमार्ग - तप के भेद
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प्रश्न - निकाचित कर्म किसे कहते हैं? उत्तर - बन्ध के चार भेद बतलाये गये हैं। यथा -
१. बद्ध - कर्म प्रायोग्य (कर्म दलिक अथवा कर्मवर्गणा) वर्गणाओं का एक स्थान पर इकट्ठा हो जाना, जैसे बिखरी हुई सूइयों का एक जगह एकत्रित हो जाना। इसी प्रकार कर्मवर्गणाओं का आत्मा के पास एकत्रित हो जाना बद्ध कहलाता है।
२. स्पृष्ट - आत्मा के पास एकत्रित हुए कर्मवर्गणों का आत्म-प्रदेशों के साथ चिपक जाना। जैसे कि - एकत्रित हुई सूइयों को धागे (सूतक डोरे) से बांध दिया जाना। ..
बद्ध स्पृष्ट - आत्म-प्रदेशों का कर्म पुद्गलों के साथ एकमेक हो जाना जैसे दूध व पानी मिल जाने पर एकमेक हो जाते हैं। अथवा सूइयों का मजबूती से बांध कर गट्ठा बना देना बद्ध स्पृष्ट कहलाता है।
३. निधत - आत्म प्रदेशों का कर्म पुद्गलों के साथ अत्यन्त गाढ (गहरा) सम्बन्ध हो जाना। जैसे - उपरोक्त सूइयों के गढे को आग में तपा कर और ऊपर से हथौड़े से पीट कर , एकमेक कर देना निधत कर्म कहलाता है।
४. निकाचित - जिस रूप में कर्मों का बंध हुआ है उनका फल उसी रूप में अनिवार्य । रूप से भोगना निकाचित कर्म कहलाता है। निधत और निकाचित में इतना ही अन्तर है कि - निधत रूप से बंधे हुए कर्मों में उद्वर्तना (कर्मों की स्थिति और रस को बढ़ा देना) और अपवर्तना (बन्धे हुए कर्मों की स्थिति और रस को घटा देना) ये दो करण हो सकते हैं। किन्तु निकाचित बन्धे हुए कर्मों में उद्वर्तना, अपवर्तना, संक्रमण, उदीरणा आदि कोई भी करण नहीं हो सकता है। क्योंकि जिस प्रकार बांधा उसी प्रकार भोगना पड़ता है। इस कर्म को नियति भी कह सकते हैं।
तप के भेद सो तवो दुविहो वुत्तो, बाहिरब्भंतरो तहा। बाहिरो छव्विहो वुत्तो, एवमब्भतरो तवो॥७॥
कठिन शब्दार्थ- तवो - तप, दुविहो - दो प्रकार का, वुत्तो - कहा गया है, बाहिरो-' बाह्य, अब्भतरो - आभ्यंतर, छव्विहो - छह प्रकार का।
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