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उत्तराध्ययन सूत्र - उनतीसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 केवली) समुच्छिन्न क्रिया अनिवृत्ति नामक शुक्लध्यान के चतुर्थपाद का ध्यान करता हुआ वेदनीय, आयुष्य, नाम और गोत्र इन चार कर्मों का एक साथ क्षय कर देता है। ___विवेचन - उपर्युक्त मूल पाठ में 'समुच्छिण्णकिरियं अणियहि' शब्द आया है। जिसका
अर्थ - टीकाकार ने भी बिना किसी मतान्तर के 'शुक्ल ध्यान का चौथा भेद' किया है। इस पाठ से एवं बोल क्रमांक ४१ में आये हुए ‘अणियट्टि' शब्द से यह स्पष्ट होता है कि पहलेशुक्ल ध्यान के चार भेदों में से चौथे भेद का नाम उपर्युक्त प्रकार से ही रहा था। बाद में कभी 'अनिवृत्ति' शब्द के स्थान पर 'अप्रतिपाति' शब्द हो गया ऐसी संभावना लगती है। 'अनिवृत्ति'
और 'अप्रतिपाति' शब्द लगभग समान अर्थ वाले होने से तीसरे और चौथे भेद में दोनों में से कोई भी शब्द कभी एक दूसरे के स्थान पर प्रयुक्त हो गया हो, ऐसी संभावना लगती है। योगनिरोध की प्रक्रिया का क्रम इस प्रकार समझना चाहिए
उत्तराध्ययन (अ० २६ बोल ७२ वां) औपपातिक सूत्र, प्रज्ञापना सूत्र (पद ३६ वां) में योग-निरोध की विधि-मन, वचन, काया के क्रम से दी है। वहाँ पर बादर-सूक्ष्म भेद भी नहीं किए हैं। उत्तराध्ययन सूत्र को छोड़कर शेष आगमों में श्वासोच्छ्वास को 'काययोग' में ही ग्रहण कर लिया है। आगमों में तो योग-निरोध की यही संक्षिप्त विधि मिलती है। आगम पाठों का अनुगमन करते हुए 'विशेषावश्यक एवं हारिभद्रीयावश्यक' में भी बादर सूक्ष्म भेद नहीं करते हुए ही योग-निरोध की विधि बताते हैं। इसीलिए इनमें एक योग का पूर्ण निरोध करने के बाद ही दूसरे-योग निरोध में प्रवृत्त होता है, ऐसा बताया है। प्रज्ञापना टीका (पद ३६) में भी यही शाब्दिक अर्थ किया है। किन्तु इसे मन्दबुद्धि वालों के सुखावबोधार्थ आचार्यों (आगमकारों) ने यह सब स्थूल दृष्टि से प्रतिपादन किया है। ऐसी टिप्पणी की है। _____ उत्तराध्ययन सूत्र (अ० २६) में - काययोग के बाद श्वासोच्छ्वास निरोध' बताया है। (उत्तराध्ययन की चूर्णि में तो योग निरोध सम्बन्धी पाठ मिलता ही नहीं है। ऐसा - पुण्यविजय जी सम्पादित उत्तराध्ययन में बताया है।) औपपातिक सूत्र एवं प्रज्ञापना सूत्र में (विशेषावश्यक भाष्य में) श्वासोच्छ्वास को काययोग के अन्तर्गत मान लेने से उसका अलग उल्लेख नहीं किया है। शेष ग्रन्थों (आवश्यक चूर्णि, कषाय प्राभृत आदि) में प्रायः काययोग के पहले श्वासोच्छ्वास का निरोध बताया है। ___ योगों को निरोध करने का आशय इस प्रकार समझना चाहिये कि योगों को उत्पन्न करने वाली शक्ति का निरोध करना। यहाँ पर कारण में कार्य का उपचार किया गया है। पहले बादर
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