________________
सम्यक्त्व पराक्रम - सम्यक्त्व पराक्रम के ७३ मूल सूत्र - काय समाधारणता २११ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 या नियुक्त करना मनःसमाधारणता है। इसके चार लाभ हैं - १. चित्त की एकाग्रता २. ज्ञान के पर्यायों की प्राप्ति ३. दर्शन की विशुद्धि और ४. मिथ्यात्व का क्षय।
१७ वचन समाधारणता वय-समाहारणयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ?
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! वाक्समाधारणता - वचन-समाधारणता (वचन को पठन पाठन स्वाध्यायादि में लगाये रहने) से जीव को क्या लाभ होता है?
वय-समाहारणयाए णं वयसाहारण-दसणपज्जवे विसोहेइ, वयसाहारणदसणपज्जवे विसोहित्ता सुलहबोहियत्तं णिव्वत्तेइ दुल्लहबोहियत्तं णिज्जरेइ ।।५७॥
कठिन शब्दार्थ- वय-समाहारणयाए - वचन समाधारणता से, वयसाहारण-दसणपज्जवे- साधारण वाणी के विषयभूत दर्शन के पर्यायों को, सुलहबोहियत्तं - सुलभबोधिता की, दुल्लहबोहियत्तं - दुर्लभबोधिता की।
भावार्थ - उत्तर - वचन-समाधारणता से वचन सम्बन्धी दर्शन-पर्यायें विशुद्ध होती हैं। . वचन-सम्बन्धी दर्शन (सम्यक्त्व) पर्यायों को विशुद्ध कर के जीव सुलभबोधिपन को प्राप्त करता है और दुर्लभबोधिपन की निर्जरा करता है।
विवेचन - वाणी को सतत स्वाध्याय में सम्यक् प्रकार से लगाये रखना वचन समाधारणा है। वचन समाधारणा से सम्यक्त्व निर्मल हो जाता है। सम्यक्त्व विशुद्ध होने पर सुलभबोधिता प्राप्त हो जाती है और दुर्लभबोधिता नष्ट हो जाती है। ..
. काय समाधारणता काय-समाहारणयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ?
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! कायसमाधारणता (काया को संयमित करने) से जीव को क्या लाभ होता है?
काय-समाहारणयाए णं चरित्तपजवे विसोहेइ, चरित्तपजवे विसोहित्ता अहक्खाय चरित्तं विसोहेइ, अहक्खाय-चरित्तं विसोहित्ता चत्तारि केवलिकम्मसे खवेइ, तओ पच्छा सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिणिव्वायइ सव्वदुक्खाणमंतं करेइ॥५८॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org