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________________ meromainconscovecom सम्यक्त्व पराक्रम - सम्यक्त्व पराक्रम के ७३ मल सत्र - मक्ति . २०५ 000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 विवेचन - यद्यपि वीतरागता का कथन पहले - छत्तीसवें बोल में भी आ चुका है तथापि राग की प्रधानता दर्शाने के लिए यह प्रश्न किया गया है। कारण यह है कि संसार में सर्वप्रकार. के अनर्थों का मूल यदि कोई है तो वह राग है। उसको दूर करना ही वीतरागता है जो कि परम पुरुषार्थ रूप मोक्ष तत्त्व का साधक है। ६ भांति खंतीए णं भंते! जीवे किं जणयइ? भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! क्षमा करने से जीव को क्या लाभ होता है? खंतीए णं परीसहे जिणेइ॥४६॥ भावार्थ - क्षमा करने से जीव परीषहों को जीत लेता है। विवेचन - दस प्रकार के श्रमण धर्मों में शांति का पहला स्थान है। शांति के दो अर्थ होते हैं - १. क्षमा और २.. सहिष्णुता। सहिष्णुता और तितिक्षा होने पर व्यक्ति की सहन करने की क्षमता बढ़ जाती है। वह परीषहों पर विजय प्राप्त कर लेता है। 8 मुक्ति मुत्तीए णं भंते! जीवे किं जणयइ? - भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! मुक्ति (निर्लोभता) से जीव को क्या लाभ होता है? मुत्तीए णं अकिंचणं जणयइ, अकिंचणे य जीवे अत्थ-लोलाणं पुरिसाणं अपत्थणिज्जे भवइ॥४७॥ कठिन शब्दार्थ - मुत्तीए - मुक्ति - निर्लोभता से, अकिंचणं - अकिंचनता, अत्थलोलाणं पुरिसाणं - अर्थलोलुपी पुरुषों द्वारा, अपत्थणिज्जे - अप्रार्थनीय। भावार्थ - उत्तर - निर्लोभता से अकिञ्चनभाव (परिग्रह रहित) की प्राप्ति होती है और अकिञ्चन जीव अर्थलोल - धन के लोभी पुरुषों का अप्रार्थनीय होता है अर्थात् वह धनलोभी : चोरादि द्वारा नहीं सताया जाता है और परिग्रह-रहित होने के कारण उसको किसी प्रकार का भय. और चिन्ता भी नहीं होती है। . विवेचन - मक्ति का अर्थ है - निर्लोभता या परिग्रह विरक्ति। निर्लोभता से. जीव Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004181
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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