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________________ २०० उत्तराध्ययन सूत्र उनतीसवाँ अध्ययन भावना कठिन शब्दार्थ - सहायपच्चक्खाणेणं - सहाय ( सहायक ) के प्रत्याख्यान से, एगीभावं - एकीभाव को, एगीभावभूए- एकीभाव को प्राप्त, एगत्तं - एकत्व की, भावेमाणे करता हुआ, अप्पसद्दे - शब्द से रहित, अप्पझंझे वाक् कलह से रहित, अप्पकलहे कलह से रहित, अप्पकसाए - कषाय से रहित, अप्पतुमंतुमे - तू तू मैं मैं से रहित, संजमबहुले - प्रधान संयमवान्, संवरबहु संवर प्रधान, समाहिए - समाधि युक्त । भावार्थ उत्तर - दूसरे मुनियों से सहायता लेने का प्रत्याख्यान - त्याग करने से जीव एकत्व भाव को प्राप्त होता है और एकत्व भाव को प्राप्त हुआ जीव एकाग्रता की भावना भाता हुआ शब्द रहित गण में भेद पड़े ऐसे वचन नहीं बोलता है। कलह-रहित, कषाय-रहित, तूं तूं मैं मैं रहित हो कर, संयम बहुल प्रधान संयम वाला, विशिष्ट संयम वाला और समाधिवंत होता है। - Jain Education International - - - विवेचन - संयमी जीवन में किसी दूसरे साधक का भी सहयोग न लेना सहाय- प्रत्याख्यान है। सहाय-त्याग का संकल्प करने से साधक एकत्व भावना से ओतप्रोत हो जाता है, फिर वह समाधि भंग करने वाले कलह, द्वेष, रोष, कषाय, ईर्ष्या, तू-तू, मैं-मैं आदि कारणों से बच जाता है। उस समाधिवान् साधक के संयम, संवर आदि में उत्तरोत्तर वृद्धि होती है। यह सहाय प्रत्याख्यान गच्छवर्ती एकल बिहार प्रतिमा वाले मुनियों के होता है। ४०. भक्त प्रत्याख्यान ••••• - भत्तपच्चक्खाणं भंते! जीवे किं जणय ? · भावार्थ - प्रश्न हे भगवन्! भक्त आहार का त्याग करने से जीव को क्या लाभ होता है? भत्तपच्चक्खाणं अणेगाई भवसयाई णिरुंभइ ॥ ४० ॥ - अनेक, कठिन शब्दार्थ - भत्तपच्चक्खाणं भक्त प्रत्याख्यान से, अणेगाई भवसयाई - सैंकड़ों भवों को, णिरुंभइ रोक देता है। भावार्थ - उत्तर भक्त- आहार का त्याग करने से अनेक सैकड़ों भवों का निरोध कर देता है (अल्पसंसारी हो जाता है)। विवेचन - भक्त प्रत्याख्यान का अर्थ आमरण अनशन व्रत है, इसको स्वीकार करके समाधिपूर्वक दृढ़ अध्यवसाय करने से साधक अनेक जन्मों का निरोध कर देता है। इस प्रकार अल्पसंसारी होना भक्त प्रत्याख्यान का फल है। - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004181
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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