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१५० . उत्तराध्ययन सूत्र - अट्ठाईसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 सद्भाव (अस्तित्व), उवएसणं - उपदेश का, भावेण - भावों से, सद्दहंतस्स - श्रद्धा करने वाले के, सम्मत्तं - सम्यक्त्व, वियाहियं - कहा गया है। . भावार्थ - इन उपरोक्त तथ्य-सत्य जीवादि तत्त्वों का सद्भाव (असली. स्वरूप बतलाने वाले) उपदेश का भाव पूर्वक-अन्तःकरण से श्रद्धा करने वाले जीव के सम्यक्त्व (सम्यग्दर्शन) होता है, ऐसा जिनेन्द्र भगवान् ने फरमाया है। - विवेचन - तत्त्वभूत जीव-अजीव आदि पदार्थों के विषय में आप्तजनों का जो उपदेश है उसे अंतःकरण से मानने, उसके प्रति अपनी अनन्य श्रद्धा रखने तथा मोहनीय कर्म के क्षय या क्षयोपशम भाव आदि से आत्मा में उत्पन्न हुए अभिरुचि रूप परिणाम विशेष को तीर्थंकरों ने सम्यक्त्व कहा है।
सम्यक्त्व मोक्ष का द्वार, मूल या अधिष्ठान है। उसी से आत्म-विकास का प्रारंभ होता है। व्रत, तप या ज्ञान आदि सम्यक्त्वपूर्वक हों, तभी मोक्ष के हेतु बन सकते हैं।
सम्यक्त्व की रुचियाँ णिसग्गुवएसरुई, आणारुई सुत्त बीयरुइमेव। अभिगमवित्थाररुई, किरिया संखेवधम्मरुई॥१६॥
कठिन शब्दार्थ - णिस्सग्गुवएसरुई - निसर्ग-उपदेश रुचि, आणारुई - आज्ञारुचि, सुत्त - सूत्र, बीयरुईमेव - बीज रुचि, अभिगम - अभिगम, वित्थाररुई - विस्तार रुचि, किरिया - क्रिया, संखेव - संक्षेप, धम्मरुई - धर्मरुचि।
भावार्थ - सम्यक्त्व का स्वरूप बता कर, अब उसकी रुचियों के नाम बताये जाते हैं - १. निसर्ग रुचि २. उपदेश रुचि ३. आज्ञा रुचि ४. सूत्र रुचि ५. बीज रुचि ६. अभिगम रुचि ७. विस्तार रुचि ८. क्रिया रुचि ६. संक्षेप रुचि और १०. धर्म रुचि।
विवेचन - रुचि का अर्थ यहां सम्यक्त्व प्राप्ति के विभिन्न निमित्तों के प्रति श्रद्धा है। सम्यक्त्व रुचि के दस भेद संक्षेप में इस प्रकार हैं -
१. निसर्ग रुचि - किसी के उपदेश के बिना स्वाभाविक रूप से होने वाली तत्त्वरुचि। २. उपदेश रुचि - गुरु आदि के उपदेश से हुई तत्त्वरुचि।
३. आज्ञारुचि - सर्वज्ञ के वचन से हुई तत्त्वरुचि। . ४. सूत्र रुचि - आगमों के गहन अध्ययन से हुई तत्त्वरुचि।
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