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- मोक्षमार्ग गति - सम्यग्-दर्शन का स्वरूप
- १४६ 0000000000000000000000000000000NOVOCONOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOD संख्या, संठाणमेव - संस्थान-आकार, संजोगा - संयोग, विभागा - विभाग, पज्जवाणं - पर्यायों का।.
. .. .... भावार्थ - एकत्व (इकट्ठे होना) और पृथक्त्व (बिखर जाना) संख्या (एक, दो, तीन आदि संख्या) और संस्थान (आकार) संयोग और विभाग (वियोग) यह पर्यायों का लक्षण है। . विवेचन - जैसे कि एक ही पुद्गल-द्रव्य में क्रमपूर्वक अनेक प्रकार के एकत्व-पृथक्त्वादि भाव उत्पन्न और विनष्ट होते रहते हैं; वैसे ये ही पर्याय कहे जाते हैं। द्रव्य नित्य है और पर्याय . अनित्य है। कारण यह है कि उत्पाद और व्यय होने पर भी द्रव्य की सत्ता का अभाव नहीं होता। जैसे कि सुवर्ण-पिण्ड में कटक रूप का उत्पाद और कुंडलरूप का विनाश होता है, परन्तु उत्पत्ति और विनाश के होने पर स्वर्ण अपने मूल स्वरूप से च्युत नहीं होता अपितु अपने मूल रूप से सर्वदा स्थित रहता है। परमाणुओं के समूह का एकत्र होकर घड़े का आकार बन जाना एकत्व है और परमाणुओं के समूह का बिखर जाना पृथक्त्व है। इसी प्रकार संयोग और विभाग के विषय में समझ लेना चाहिए और 'च' शब्द से नवीन और पुरातन अवस्था, रूप पर्यायों की कल्पना कर लेनी चाहिये। . .
नव तत्त्वों के नाम जीवाजीवा य बंधो य, पुण्णं पावासवो तहा। संवरो णिजरा मोक्खो, संतेए तहिया णव॥१४॥
कठिन शब्दार्थ - जीवा - जीव, अजीवा - अजीव, बंधो - बंध, पुण्णं - पुण्य, पावासवो - पाप आम्रव, संवरो - संवर, णिज्जरा --निर्जरा, मोक्खो - मोक्ष, संति - हैं, एए - ये; तहिया - यथातथ्य, णव - नौ। - भावार्थ - जीव, अजीव, बन्ध, पुण्य, पाप, आम्रव, संवर, निर्जरा और मोक्ष, ये नव यथातथ्य (तत्त्व) हैं।
सम्यग्-दर्शन का स्वरूप तहियाणं तु भावाणं, सब्भावे उवएसणं। भावेण सद्दहंतस्स, सम्मत्तं तं वियाहियं ॥१५॥ .. .. कठिन शब्दार्थ - तहियाणं भावाणं - तथ्यरूप (तत्त्वभूत) भावों के, सब्भावे -
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