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उत्तराध्ययन सूत्र - अट्ठाईसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
विवेचन - जो रूंप आदि गुणों तथा उसकी काला, नीला आदि विभिन्न पर्यायों का आधार है, वह द्रव्य है। जैन दार्शनिकों ने सहभावी धर्मों को गुण और क्रमभावी धर्मों को पर्याय कहा है। जैसे - आत्मा एक द्रव्य है, उसके ज्ञान आदि गुण हैं तथा कर्मवशात् उसकी मनुष्य तिर्यंच आदि जो विभिन्न अवस्थाएं हैं, वे उसकी पर्याय हैं। .
. षट् द्रव्य धम्मो अधम्मो आगासं, कालो पुग्गल-जंतवो। एस लोगो त्ति पण्णत्तो, जिणेहिं वरदंसिहिं॥७॥
कठिन शब्दार्थ - धम्मो - धर्मास्तिकाय, अधम्मो - अधर्मास्तिकाय, आगासं - आकाशास्तिकाय, कालो - काल, पुग्गल-जंतवो - पुद्गलास्तिकाय और. जीवास्तिकाय, एसयह, लोगोत्ति - लोक, पण्णत्तो - कहा है। ___ भावार्थ - धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय, जीवास्तिकाय और काल, यह छह द्रव्य रूप लोक है। ऐसा वरदर्शी, केवलदर्शी, रागद्वेष को जीतने वाले जिनेश्वर देवों ने फरमाया है।
विवेचन - धर्म, अधर्म, आकाश, पुद्गल, जीव और काल जितने क्षेत्र में हैं, उतने क्षेत्र को 'लोक' कहते हैं। जहाँ आकाश के सिवाय अन्य कोई द्रव्य नहीं है, उसे 'अलोक' कहते हैं। .
धम्मो अधम्मो आगासं, दव्वं इक्किक्कमाहिये। अणंताणि य दव्वाणि, कालो पुग्गल-जंतवो॥८॥
कठिन शब्दार्थ - इक्किक्कं - एक-एक, आहियं - कहा है, अणंताणि - अनंत, दव्वाणि - द्रव्य।
भावार्थ - धर्म द्रव्य, अधर्म द्रव्य, आकाश द्रव्य ये एक-एक कहे गये हैं और काल पुद्गल और जीव, ये तीनों द्रव्य अनन्त कहे गये हैं।
गइ-लक्खणो उ धम्मो, अहम्मो ठाण-लक्खणो। भायणं सव्वदव्वाणं, णहं ओगाह-लक्खणे॥६॥
कठिन शब्दार्थ - गइलक्खणो - गति लक्षण, ठाणलक्खणो - स्थिति लक्षण, भायणंभाजन, सव्वदव्वाणं - सभी द्रव्यों का, णहं - नभ का, ओगाहलक्खणं - अवगाहन लक्षण।
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