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मोक्षमार्ग गति - द्रव्य, गुण और पर्याय
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३. अवधिज्ञान - इन्द्रिय तथा मन की सहायता बिना, मर्यादा को लिए हुए रूपी द्रव्य का ज्ञान करना अवधिज्ञान कहलाता है। ..
४. मनःपर्ययज्ञान - इन्द्रिय और मन की सहायता के बिना मर्यादा को लिए हुए संज्ञी जीवों के मनोगत भावों का जानना मनःपर्ययज्ञान है।
५. केवलज्ञान - मति आदि ज्ञान की अपेक्षा बिना, त्रिकाल एवं त्रिलोकवर्ती समस्त पदार्थों को युगपत् हस्तामलकवत् जानना केवलज्ञान है।
इस गाथा में श्रुतज्ञान का ग्रहण पहले किया है। इसका कारण यह है कि मतिज्ञान आदि ज्ञानों का स्वरूप प्रायः श्रुतज्ञान के अधीन है। इस बात को बतलाने के लिए यहाँ श्रुतज्ञान का ग्रहण पहले किया गया है।
एवं पंचविहं णाणं, दव्वाण य गुणाण य। - पजवाण य सव्वेसिं, णाणं णाणीहिं देसियं ॥५॥
कठिन शब्दार्थ - दव्वाण - द्रव्यों का, गुणाण - गुणों का, पज्जवाण - पर्यायों का, सव्वेसिं - समस्त, णाणं - जानने के लिए, णाणीहिं - ज्ञानी पुरुषों ने, देसियं - निर्देश किया है।
भावार्थ - ज्ञानी पुरुषों ने द्रव्य, गुण और उनकी समस्त पर्यायों को जानने के लिए यह उपरोक्त पाँच प्रकार का ज्ञान देशित-फरमाया है। :
द्रव्य, गुण और पर्याय गुणाणमासओ दव्वं, एगदव्वस्सिया गुणा। - लक्खणं प्रजवाणं तु, उभओ अस्सिया भवे॥६॥
कठिन शब्दार्थ - गुणाणं - गुणों का, आसओ - आश्रय, एगदव्वस्सिया - एक द्रव्य के आश्रित, गुणा - गुण, लक्खणं - लक्षण, पज्जवाणं - पर्यायों का, उभओ - दोनों के, अस्सिया - आश्रित होकर रहना, भवे - होता है।
भावार्थ - द्रव्य गुणों का आश्रय-आधार है, अर्थात् जिसके आश्रय में गुण रहते हैं उसे 'द्रव्य' कहते हैं और गुणं अपने आधारभूत एक द्रव्य में रहते हैं और पर्यायों का लक्षण यह है कि पर्यायें द्रव्य और गुण दोनों में आश्रित रहने वाली हैं अर्थात् द्रव्य और गुण दोनों में जो रहे, उसे 'पर्याय' कहते हैं।
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