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सामाचारी - आहार पानी त्याग के छह कारण
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भावार्थ - दूसरी पोरिसी में ध्यान करना चाहिए। तीसरी पोरिसी में आगे कहे जाने वाले, छह कारणों में से किसी एक कारण के उपस्थित होने पर आहार-पानी की गवेषणा करे।
आहार पानी की गवेषणा के छह कारण वेयण-वेयावच्चे, ईरियट्ठाए य संजमट्ठाए। तह पाणवत्तियाए, छटुं पुण धम्म-चिंताए॥३३॥ . ..
कठिन शब्दार्थ - वेयण - वेदना, वेयावच्चे - वैयावृत्य, ईरियट्ठाए - ईर्यासमिति के लिए, संजमट्ठाए - संयम पालने के लिए, पाणवत्तियाए - प्राणों की रक्षा के लिए, धम्मचिंताएधर्म चिंतन के लिए।
भावार्थ - १. क्षुधावेदनीय की शांति के लिए, २. वैयावृत्य-सेवा करने के लिए, ३. ईर्यासमिति के पालन के लिए ४. संयम पालने के लिए तथा ५. दस प्राणों की रक्षा के लिए अर्थात् जीवन-निर्वाह के लिए ६. शास्त्र के पठन आदि धर्म चिन्तन के लिए साधु आहार-पानी की गवेषणा करे।
णिग्गंथो धिइमंतो, णिग्गंथी वि ण करिज छहिं चेव। .. ठाणेहिं उ इमेहिं, अणइक्कमणाइ से होइ॥३४॥
कठिन शब्दार्थ - णिग्गंथो - निग्रंथ, धिइमंतो - धृतिमान, णिग्गंथी - निग्रंथी, छहिं ठाणेहिं - छह कारणों से, ण करिज्ज - न करे, अणइक्कमणाइ - अतिक्रमण नहीं, होइ - होता।
भावार्थ - धैर्यवान् साधु अथवा साध्वी इन आगे कहे जाने वाले छह कारणों से आहारपानी न करे तो वह तीर्थंकर देव की आज्ञा एवं संयम का अतिक्रमण नहीं करता, अपितु उनकी आज्ञा एवं संयम का पालन करने वाला ही होता है।
आहार पानी त्याग के छह कारण आयंके उवसग्गे, तितिक्खया बंभचेर-गुत्तीसु। पाणिदया तवहेडं, सरीरवोच्छेयणट्ठाए॥३५॥
कठिन शब्दार्थ - आयंके - आतंक, उवसग्गे - उपसर्ग, तितिक्खया - तितिक्षा (सहिष्णुता) वृद्धि के लिए, बंभचेरगुत्तीसु - ब्रह्मचर्य की गुप्ति (रक्षा) के लिए, पाणिदया -
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