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उत्तराध्ययन सूत्र - पच्चीसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
भावार्थ - गीले और सूखे मिट्टी के दो गोलों को यदि भींत पर फेंका जाय तो वे दोनों भीत से टकरायेंगे, उनमें जो गीला होगा वह वहीं चिपक जायगा।
एवं लग्गति दुम्मेहा, जे णरा कामलालसा। विरता उण लग्गति, जहा से सुखगोलए॥४३॥
कठिन शब्दार्थ - ण लग्गति - नहीं चिपकते, दुम्मेहा - दुर्मेधा - दुर्बुद्धि, कामलालसाकामभोगों की लालसा में संलग्न, विरत्ता - विरक्त।
भावार्थ - इसी प्रकार जो दुर्मेधा-दुर्बुद्धि पुरुष कामभोगों में आसक्त रहते हैं वे कर्मों से लिप्त हो कर संसार में फंसे रहते हैं और जो विरक्त हैं. वे यथा मिट्टी के सूखे गोले के समान कर्मों से लिप्त नहीं होते।
. विवेचन - जयघोषमुनि ने विजयघोष को सावधान करते हुए कहा - हे विजयघोषातू मिथ्यात्व के कारण घोर संसार समुद्र में भटक रहा है अतः मिथ्यात्व छोड़ और शीघ्र ही भागवती दीक्षा ग्रहण कर अन्यथा सप्तभय रूपी आवतों के कारण भयावह संसार समुद्र में सूख जायेगा। विषयवासना से युक्त जीव गीले मिट्टी के गोले की तरह कर्मों के लेप से युक्त होते हैं किंतु जो सूखे गोले की तरह कर्मों से लिप्त नहीं होते वे शीघ्र कर्मक्षय कर मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं।
यहाँ पर इतना और स्मरण रहे कि यज्ञमण्डप में उपस्थित हुए विद्वानों के सामने कर्मोपचय के सम्बन्ध में इस प्रकार अति स्थूल दृष्टान्त देने का तात्पर्य इतना ही प्रतीत होता है कि उन विमानों के साथ यज्ञ मण्डप में बैठे हुए अनेक साधारण बुद्धि रखने वाले मनुष्य भी उपस्थित थे, जो कि.म अति सूक्ष्म विषय को सहज में समझने की योग्यता नहीं रखते थे। इसलिए परमदयाल अपपोष मुनि ने उनके बोधार्थ इस अति सहज और स्थूल वृद्धांत को व्यवहार में लाने की चेष्टा की, जिससे कि वे लोग इस सरल दृष्टांत के द्वारा कर्म बंध के विषय को अच्छी तरह से समझ जायं। जैसे कि स्थानांग सूत्र में लिखा है - 'हेटणा जाणा' अर्थात् बहुत से भीष हेतु के द्वारा बोध को प्राप्त होते हैं।
भाष मुनि केस सारगर्भित उपदेश को सुनने के अनन्तर विजयघोष याजक ने क्या किया अर्थात् उसकी आत्मा पर मुनि जी के उक्त उपदेश का क्या प्रभाव पड़ा और उसने फिर । क्या किया, अब इस विषय में कहते हैं -
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