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उत्तराध्ययन सूत्र - पच्चीसवाँ अध्ययन Co0OOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOmom लक्षणों से लक्षित या इन गुणों से युक्त जो व्यक्ति है, उसी को ब्राह्मण कहना चाहिए। इसके अतिरिक्त विजयघोष के प्रसन्न होने के दो कारण यहाँ पर उपस्थित हो गये - एक तो संशयों का दूर होना और दूसरे वर्षों से गये हुए भ्राता का मिलाप होना। इसलिए वह अति प्रसन्नचित्त होकर जयघोष मुनि के पूर्वोक्त वर्णन का सविनय समर्थन करने लगा।
तुन्भे जइया जण्णाणं, तुब्भे वेयविऊ विऊ। जोइसंगविऊ तुन्भे, तुन्भे धम्माण पारगा॥३८॥
कठिन शब्दार्थ - तुब्भे - आप, जइया - यष्टा-यज्ञकर्ता, जण्णाणं - यज्ञों के, वेयविऊ - वेदवित्, विऊ - विद्वान्, जोइसंगविऊ - ज्योतिषांगों के वेत्ता, धम्माण पारंगा - धर्मों के पारगामी।
भावार्थ - वास्तव में आप ही यज्ञों के करने वाले हैं। आप ही वेदवित्-वेदों के ज्ञाता विद्वान हैं। आप ही ज्योतिष शास्त्र एवं उसके अंग जानने वाले हैं और आप ही धर्मों के पारगामी हैं।
तुन्भे समत्था उद्धत्तुं, परमप्पाणमेव य। तमणुग्गहं करेहम्हं, भिक्खेणं भिक्खुउत्तमा!॥३६॥ ,
कठिन शब्दार्थ - तं अणुग्गहं - इसलिये अनुग्रह, करेह - करें, अहं - हम पर, भिक्खेणं - भिक्षा से, भिक्खुउत्तमा - उत्तम भिक्षुवर! ।
भावार्थ - हे मुने! आप अपनी और दूसरों की आत्मा का उद्धार करने में समर्थ हैं इसलिए हे भिक्षुओं में श्रेष्ठ भिक्षु! भिक्षा ग्रहण कर के हम पर अनुग्रह कीजिये।
विवेचन - जयघोष मुनि द्वारा अपने संशयों के दूर हो जाने तथा वर्षों से बिछुड़े हुए ज्येष्ठ भ्राता के मिलन से विजयघोष अत्यंत प्रसन्न थे। उन्होंने हाथ जोड़ कर आभार प्रदर्शित करते हुए कहा - हे भगवन्! आपने मुझे ब्राह्मणत्व का यथार्थ दर्शन करा दिया। वास्तव में आप ही सच्चे याज्ञिक, वेदज्ञ, ज्योतिषांगवेत्ता और धर्मपारगामी हैं और आप ही स्व पर का उद्धार करने में समर्थ हैं अतः आप यथेष्ट भिक्षा ग्रहण कर हमें अनुग्रहीत कीजिये।
यहाँ पर इतना स्मरण रहे कि विजयघोष ने जयघोष मुनि की सेवा में भिक्षा के लिए जो प्रार्थना की है, वह भावपूर्ण और शुद्ध हृदय से की है। अतः प्रत्येक सद्गृहस्थ को योग्य पात्र । का अवसर प्राप्त होने पर अपने अन्तःकरण में इसी प्रकार के भावों को स्थान देना चाहिए।
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