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________________ प्रवचन-माता - उपसंहार ८३ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 एयाओ पंच समिईओ, चरणस्स य पवत्तणे। . गुत्ती णियत्तणे वुत्ता, असुभत्थेसु सव्वसो॥२६॥ कठिन शब्दार्थ - चरणस्स - चारित्र में, पवत्तणे - प्रवृत्ति के लिए, असुभत्थेसु - अशुभ विषयों से, णियत्तणे - निवृत्ति के लिए, सव्वसो - सर्वथा। भावार्थ - ये उपरोक्त पाँच समितियाँ चारित्र की प्रवृत्ति के लिए कही गई हैं और गुप्तियाँ अशुभ कार्य से सर्वथा निवृत्ति के लिए कही गई हैं। विवेचन - समिति का प्रयोजन चारित्र में प्रवृत्ति कराना है और गुप्ति का प्रयोजन शुभ और अशुभ सभी प्रकार के व्यापारों से निवृत्ति कराना है अर्थात् मन, वचन, काया रूप तीनों योगों का सर्वथा निरोध करना गुप्ति का प्रयोजन है। समिति प्रवृत्ति रूप और गुप्ति निवृत्ति रूप है। - उपसंहार एसा पवयणमाया, जे सम्म आयरे मणी। - सो खिप्पं सव्वसंसारा, विप्पमुच्चइ पंडिए॥२७॥ तिबेमि॥ कठिन शब्दार्थ - सम्मं - सम्यक् प्रकार से, आयरे - आचरण करता है, खिप्पं - क्षिप्र - शीघ्र, सव्वसंसारा - समस्त संसार से, विप्पमुच्चइ - विमुक्त हो जाता है। भावार्थ - जो मुनि इन आठ प्रवचन माताओं का सम्यक् प्रकार से आचरण करता है वह पंडित साधु संसार के समस्त बन्धनों से शीघ्र छूट कर मोक्ष को प्राप्त हो जाता है। ऐसा मैं कहता हूँ। विवेचन - प्रस्तुत गाथा में अध्ययन का उपसंहार करते हुए सूत्रकार ने अष्ट प्रवचन माताओं के सम्यक् आचरण का फल प्रतिपादित किया है। अष्ट प्रवचन माताओं का विशुद्ध भावों से सम्यक् आचरण करने वाला साधक चार गति रूप संसार का अंत कर मोक्ष सुखों को प्राप्त करता है। ॥ प्रवचनमाता नामक चौबीसवाँ अध्ययन समाप्त॥ For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004181
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages450
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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