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उत्तराध्ययन सूत्र - चौबीसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
आदान निक्षेप समिति ओहोवहोवग्गहियं, भंडयं दुविहं मुणी। गिण्हतो णिक्खिवंतो य, पउंजेज इमं विहिं॥१३॥
कठिन शब्दार्थ - ओहोवहोवग्गहियं - ओघ उपधि और औपग्रहिक उपधि, भंडगं - भण्डोपकरणों को, गिण्हतो - ग्रहण करता हुआ, णिक्खिवंतो - रखता हुआ, पउंजेज्ज - प्रयोग करे, विहिं - विधि का। __भावार्थ - अब आदान-भंड-मात्र-निक्षेपणा समिति के विषय में कहते हैं - ओघ उपधि
और औपग्रहिक उपधि, इन दोनों प्रकार की उपधि तथा भंडोपकरण को ग्रहण करता हुआ और रखता हुआ मुनि इस विधि का प्रयोग करे।
विवेचन - जो सदैव पास. रखी जाती है, वह 'ओघ' उपधि कहलाती है। यथा - रजोहरण, वस्त्र-पात्र आदि। जो संयम-रक्षार्थ थोड़े समय के लिए ग्रहण की जाती है वह 'औपग्रहिक' उपधि कहलाती है। जैसे - पाट-पाटला, शय्या आदि।
चक्खुसा पडिलेहित्ता, पमज्जेज जयं जई।
आइए णिक्खिवेज्जा वा, दुहओ वि समिए सया॥१४॥
कठिन शब्दार्थ - चक्खुसा - आंखों से, पडिलेहित्ता - प्रतिलेखन कर, पमज्जेज्ज - प्रमार्जन करके, आइए - ग्रहण करे, णिक्खिवेज्जा - रखे, समिए - समिति युक्त।
भावार्थ - समितिवन्त यति-साधु सदैव यतनापूर्वक आँखों से देख कर और प्रमार्जन कर के दोनों प्रकार की उपधि को ग्रहण करे तथा रखे। __विवेचन - साधु साध्वियों के द्वारा अपने उपकरणों को शास्त्रोक्त विधि पूर्वक यतना से ग्रहण करना (आदान) और रखना (निक्षेप) आदान निक्षेप समिति है।
___ अगर साधु साध्वी अपने किसी भी उपकरण को बिना देखे और प्रमार्जन किये प्रमादवश इस्तेमाल करता है या उठाता रखता है या उपयोग शून्य हो कर ग्रहण निक्षेपण करता है तो उससे अनेक त्रस एवं स्थावर जीवों की विराधना की संभावना है अतः आदान निक्षेपण समिति का पालन करने वाला साधक ही इस समिति का आराधक है। जो प्रमाद करता है, प्रतिलेखनप्रमार्जन भलीभांति नहीं करता, वह इस समिति का विराधक माना गया है।
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