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उत्तराध्ययन सूत्र - द्वितीय अध्ययन
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शरीर छिल जाने से या कठोर स्पर्श होने से जो पीड़ा होती है, उसे समभावं पूर्वक सहन करने वाला तृणस्पर्श परीषह-जयी कहलाता है।
आयवस्स णिवाएणं, अउला हवइ वेयणा। एवं णच्चा ण सेवंति, तंतुजं.तणतज्जिया॥३५॥
कठिन शब्दार्थ - आयवस्स - तेज धूप, णिवाएणं - पड़ने से, अउला - अतुल - (तीव्र), वेयणा - वेदना, ण सेवंति - सेवन नहीं करते, तंतुजं - तंतुजन्य पट, तणतजियातृण स्पर्श से। ___ भावार्थ - अत्यन्त धूप पड़ने से और तृणों के स्पर्श से अत्यधिक वेदना होती है, उस समय साधु को इस प्रकार विचार करना चाहिए कि 'इस आत्मा ने नरकादि दुर्गतियों में जो वेदना सही है, उसके सामने यह तृणजन्य वेदना तो कुछ भी नहीं है। आये हुए कष्टों को समभाव से सहन करना मेरे लिए महान् लाभ का कारण है' - ऐसा जान कर जिनकल्पी मुनि वस्त्र-कम्बल आदि का सेवन नहीं करते हैं।
१८. जन्लपरीवह किलिण्णगाए मेहावी, पंकेण व रएण वा। प्रिंसु वा परियावेणं, सायं णो परिदेवए॥३६॥
कठिन शब्दार्थ - किलिण्णगाए - शरीर के क्लिन्न (लिप्त या गीले) हो जाने पर, पंकेण - पंक (मैल) से, रएण - रज से, प्रिंसु - ग्रीष्म ऋतु में, परियावेणं - परिताप से, सायं - साता सुख के लिए, णो परिदेवए - परिदेवन (विलाप) न करे।
भावार्थ - ग्रीष्म ऋतु में अथवा अन्य ऋतु में परिताप से होने वाले पसीने से अथवा मैल से अथवा रज से शरीर लिप्त हो जाय तो भी बुद्धिमान् साधु सुख के लिए दीनता नहीं दिखावे।
विवेचन - जल्ल का अर्थ है - पसीने से होने वाला मैल। ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की तीक्ष्ण किरणों के ताप से उत्पन्न पसीने के साथ धूल चिपक जाने पर मैल जमा होने से शरीर से दुर्गन्ध आने लगती है उसे मिटाने के लिए ठंडे जल से स्नान करने की अभिलाषा न रखना क्योंकि सचित्त ठंडे जल से अप्कायिक जीवों की विराधना होती है। इस प्रकार शरीर पर मैल जमा हो जाने पर उसे दूर करने की भावना न रखना और इस कष्ट को समभाव पूर्वक सहन करना जल्ल परीषह-जय है। जल्ल परीषह को मल्ल (मैल) परीषह भी कहते हैं।
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