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उत्तराध्ययन सूत्र - द्विताय अध्ययन k★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
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भावार्थ - श्रोत्र आदि इन्द्रियों को कांटे के समान चुभने वाली दारुण (भयंकर) कठोर भाषा को सुन कर साधु मौन रह कर उसकी उपेक्षा करे। उस कठोर भाषा को मन में न रखे (द्वेषभाव न लावे)।
विवेचन - क्रोधाग्नि को उद्दीप्त करने वाले क्रोध रूप, आक्रोश रूप, कठोर, अवज्ञाकर, निंदा रूप, तिरस्कार सूचक असभ्य वचनों को सुन कर भी जो उस ओर अपना चित्त नहीं लगाता है, तत्काल उसका प्रतीकार करने में समर्थ होते हुए भी यह सब पाप कर्म का फल है' इस प्रकार जो चिंतन कर कषाय विष को अपने हृदय में लेश मात्र भी स्थान नहीं देता, वह .. आक्रोश परीषह-जयी होता है।
१३. वधपरीषह हओ ण संजले भिक्खू, मणं पि ण पओसए। तितिक्खं परमं णच्चा, भिक्खू धम्मं विचिंतए॥२६॥
कठिन शब्दार्थ - हओ - मारे, मणंपि - मन से भी, ण पओसए - द्वेष न लावे, प्रदूषित न करे, तितिक्खं - तितिक्षा-क्षमा-सहिष्णुता को, भिक्खु धम्म - भिक्षुधर्म - क्षमा, मार्दव आदि दशविध श्रमण धर्म का, विचिंतए - चिंतन करे।
भावार्थ - यदि कोई दुष्ट अनार्य पुरुष साधु को मारे तो, साधु उस पर क्रोध न करे। मन से भी उस पर द्वेष न लावे। 'क्षमा उत्कृष्ट धर्म है', ऐसा जान कर साधु क्षमा, मार्दव आदि दसविध यतिधर्म का, विचार कर के पालन करे।।
समणं संजय दंतं, हणिज्जा कोई कत्थइ। णत्थि जीवस्स णासुत्ति, एवं पेहेज्ज संजए॥२७॥
कठिन शब्दार्थ - समणं - श्रमण, संजयं - संयत, दंतं - दान्त, हणिज्जा - मारे, कत्थइ - कहीं पर, जीवस्स - जीव का, णासुत्ति - नाश, पेहेज - विचार करे, संजए - साधु।
भावार्थ - पांच इन्द्रियों का दमन करने वाले, संयमवंत, तपस्वी साधु को कोई भी व्यक्ति कहीं पर मारे तो 'जीव का कभी नाश नहीं होता', इस प्रकार साधु विचार करें।
विवेचन - वध का अर्थ है - डंडा, चाबुक, बेंत आदि से मारना पीटना अथवा प्राणों का वियोग कर देना।
वध परीषह का प्रसंग उपस्थित होने पर साधु मारने वालों पर लेशमात्र भी द्वेषादि न
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