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उत्तराध्ययन सूत्र - द्वितीय अध्ययन
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करते हुए भी मोक्ष मार्ग से च्युत न होना निषद्या परीषह-जय है। जो इस निषद्या जनित बाधाओं को समभाव पूर्वक सहन करता है, वह निषद्या परीषह-विजयी कहलाता है।
११. शय्या परीवह उच्चावयाहि सिजाहिं, तक्स्सी भिक्खू थामवं। णाइवेलं विहणिज्जा, पावदिट्टि विहण्णइ॥२२॥
कठिन शब्दार्थ - उच्चावयाहिं - ऊंची-नीची (अच्छी बुरी) सिज्जाहिं - शय्या, तवस्सीतपस्वी, थामवं - सामर्थ्यवान्, अइवेलं - संयम मर्यादा को, ण विहण्णिजा - भंग न करे, उल्लंघन न करे, पावदिट्ठी - पापदृष्टि, विहण्णइ - भंग करता है। ___ भावार्थ - शीत-तापादि के परीषह को सहन करने में समर्थ तपस्वी साधु को यदि ऊँचीनीची (अनुकूल-प्रतिकूल) शय्या मिले तो हर्ष विषाद न करता हुआ, संयम धर्म की मर्यादा का उल्लंघन न करे, क्योंकि 'यह अच्छा है, यह बुरा है', - इस प्रकार पाप-दृष्टि रखने वाला . साधु संयम की मर्यादा का उल्लंघन कर शिथिलाचारी हो जाता है।
विवेचन - साधु, उच्च - उत्तम शय्या (उपाश्रय) को पाकर 'अहो! मैं कितना भाग्यशाली हूँ कि मुझे सभी ऋतुओं में सुखकारी ऐसी अच्छी शय्या (वसति या उपाश्रय) मिली हैं अथवा अवच (खराब) शय्या पाकर - ‘आह! मैं कितना अभागा हूँ कि मुझे शीतादि निवारक शय्या भी नहीं मिली'-इस प्रकार हर्ष-विषाद आदि करके समता रूप अति उत्कृष्ट मर्यादा का उल्लंघन न करे।
पइरिक्कमुवस्सयं लधु, कल्लाणं अदुव पावगं। किमेगरायं करिस्सइ, एवं तत्थऽहियासए॥२३॥ .
कठिन शब्दार्थ - पइरिक्कं - प्रतिरिक्त - स्त्री आदि की बाधा से रहित, उवस्सयं - उपाश्रय-स्थान को, लधु - पाकर, कल्लाणं - कल्याण - अच्छा, अदुव - अथवा, पावगं- पापक - बुरा, किं - क्या, मे - मेरा, एगरायं - एक रात्रि में, करिस्सइ - करेगा, अहियासए - समभाव पूर्वक सहन करे।
भावार्थ - स्त्री-पशु-पण्डक आदि से रहित, अच्छा अथवा बुरा स्थान प्राप्त कर ‘एक रात में यह मेरा क्या करेगा' इस प्रकार सोच कर साधु वहाँ पर समभाव से सुख-दुःख सहन करे।
विवेचन - स्वाध्याय, ध्यान और विहार के श्रम के कारण थक कर खुरदरा, उबड़ खाबड़ प्रचुर मात्रा में कंकड़ों पत्थरों से व्याप्त अति शीत या अति उष्ण भूमि वाले, गंदे या
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