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परीषह - परीषहों का स्वरूप - निषद्या परीषह
४१ kakakakakakakakakakakakakakkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk में मूर्छा-ममत्व भाव) कतई नहीं रखे। गृहस्थों से सम्बन्ध न रखता हुआ घर रहित हो कर विहार करता रहे।
१०. निवद्या परीवह सुसाणे सुण्णगारे वा, रुक्खमूले व एगओ। अकुक्कुओ णिसीएजा, ण य वित्तासए परं॥२०॥
कठिन शब्दार्थ - सुसाणे - श्मशान में, सुण्णगारे - शून्यागार - सूने घर में, रुक्खमूलेवृक्ष के मूल में, एगओ - एकाकी, अकुक्कुओ - अचपल भाव से, जिसीएजा - बैठे, वित्तासए - त्रास दे, परं - अन्य को।
भावार्थ - साधु श्मशान में अथवा सूने घर में अथवा वृक्ष के नीचे किसी प्रकार की अशिष्ट चेष्टा न करता हुआ अकेला हो - राग-द्वेष रहित हो कर बैठे और किसी भी प्राणी को त्रास न पहुँचावे। - विवेचन - 'निषद्या' शब्द के दो अर्थ हैं - १. उपाश्रय और २. बैठना। प्रस्तुत संदर्भ में बैठना अर्थ ही अभिप्रेत है।
'सुसाणे, सुण्णगारे, रुक्खमूले' - ये तीनों शब्द एकान्त स्थान के द्योतक हैं। इनमें विशिष्ट साधना करने वाले मुनि ही रहते हैं।
तत्थ से चिट्ठमाणस्स, उवसग्गाभिधारए। संकांभीओ. ण गच्छेजा, उद्वित्ता अण्णमासणं॥२१॥ .
कठिन शब्दार्थ - चिट्ठमाणस्स - बैठे हुए, उवसग्गा - उपसर्ग, अभिधारए - चिंतन करे, संकाभीओ - अनिष्ट की शंका से भयभीत, उद्वित्ता - उठ कर, अण्णं - दूसरे, आसणं - आसन (स्थान) पर।।
भावार्थ - वहाँ श्मशान आदि में बैठे हुए उस साधु पर यदि उपसर्ग आवे तो ऐसा चिंतन करे कि 'मैं संयम में स्थिर हूँ, ये उपसर्ग मेरा क्या बिगाड़ सकते हैं।' इस प्रकार विचार कर उन्हें समभाव पूर्वक सहन करे किन्तु उपसर्गों की शंका से भयभीत हो कर अपने स्थान से उठ कर दूसरे स्थान पर न जावे।
विवेचन - श्मशान आदि एकान्त स्थान में सिंह, व्याघ्र आदि की नाना प्रकार की भयंकर ध्वनि सुन कर भी भय न होना, नाना प्रकार का उपसर्ग (देव, तिर्यंच और मनुष्य संबंधी) सहन
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