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कासी
कठिन शब्दार्थ मा- नहीं, चंडालियं क्रोधादि वश असत्य भाषण, करे, बहुयं - बहुत अधिक, आलवे - बोलें, कालेण काल के समय में, अहिज्जित्ता अध्ययन करके, तओ - तत्पश्चात्, झाइज्ज
ध्यान करे, एगओ - अकेले ।
भावार्थ साधु को क्रोधादि वश असत्य भाषण नहीं करना चाहिए और यथा समय शास्त्रादि का अध्ययन कर के, उसके बाद अकेला यानी राग-द्वेष रहित होकर एकांत में, चिन्तन-मनन करे |
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. विनयश्रुत - विनीत शिष्य का कर्त्तव्य
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विवेचन
गुरु शिष्य को उपदेश करते हैं कि वह क्रोध और लोभ आदि के वशीभूत होकर कभी झूठ न बोले क्योंकि मृषावाद का आचरण साधु के लिए हर प्रकार से निंदनीय है। झूठ बोलने से मनुष्य सभी के अविश्वास का पात्र बन जाता है इसलिए असत्य भाषण का सर्वथा त्याग कर देना चाहिए।
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पठन पाठन (स्वाध्याय) काल की मर्यादा के अनुसार करके, द्रव्य और भाव से एकाकी होकर उस का चिंतन करना चाहिए। द्रव्य से अकेला होना अर्थात् स्त्री, पशु और नपुंसकादि से रहित स्थान में बैठना और भाव से अकेला होना अर्थात् राग द्वेषादि से रहित होना है। - इस गाथा में अकृत्य का त्याग और कृत्य के सेवन का उपदेश दिया गया है। विनीत शिष्य का कर्त्तव्य
कट्टु, ण णिण्हविज्ज कयाइ वि ।
अकडं णो कडे त्ति य ॥११॥
कदाचित्, ण णिण्हविज्ज
किया है, भासेज्जा
कडे
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आहच्च चंडालियं कंडे कडे ति भासिज्जा,
कठिन शब्दार्थ - आहच्च कभी भी, क किये हुए को, किये हुए को ।
भावार्थ - यदि कभी क्रोधादि वश असत्य वचन मुख से निकल जाय तो उसे कभी भी छिपावे नहीं किन्तु किये हुए को किया है इस प्रकार और नहीं किये हुए को नहीं किया, इस प्रकार कहे अर्थात् किये हुए दोष को सरल भाव से स्वीकार कर ले।
विवेचन - विवेकी पुरुष कभी क्रोध या लोभादि के वशीभूत होकर झूठ बोलने के लिए बाध्य हो जाता है परन्तु ऐसा होने पर भी विनीत शिष्य का यह कर्त्तव्य है कि वह उसे छिपाने की हरगिज कोशिश न करे, गुरुजनों के पूछने अथवा न पूछने पर तथा किसी अन्य व्यक्ति के
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न छिपावे,
कयाइ
भाषण करे, अकडं
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