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________________ २६८ उत्तराध्ययन सूत्र - सत्तरहवां अध्ययन tatakakakakakakakakakakakkakkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkxxx विवादं च उदीरेइ, अहम्मे अत्तपण्णहा। वुग्गहे कलहे रत्ते, पावसमणे त्ति वुच्चइ॥१२॥ कठिन शब्दार्थ - विवादं - विवाद को, उदीरेइ - पुनः भड़काता है, अहम्मे - अधर्मी, अत्तपण्णहा - आप्त-हितकारी प्रज्ञा का हनन करने वाला, वुग्गहे - विग्रह-कदाग्रह, कलहे - कलह में, रत्त - रत-रचा पचा हुआ। भावार्थ - जो क्लेश शान्त हो चुका है उसे फिर से उत्पन्न करने वाला, सदाचार रहित, आत्मा के अस्तित्व एवं परलोकादि के प्रश्न का नाश करने वाला अथवा कुतर्कों द्वारा अपनी और दूसरों की बुद्धि को मलिन बनाने वाला और विग्रह-दंडादि द्वारा लड़ाई करने वाला तथा वचन द्वारा कलह करने वाला पापश्रमण कहलाता है। विवेचन - आगम आज्ञा है कि साधु कषाय का उपशमन किये बिना अन्न जल भी नहीं लेता है। इसके विपरीत जो फिर से कषाय की उदीरणा करता और कलह तथा विग्रह में रचा पचा रहता है वह पापश्रमण कहलाता है। अथिरासणे कुक्कुइए, जत्थ-तत्थ णिसीयइ। आसणम्मि अणाउत्ते, पावसमणे त्ति वुच्चइ॥१३॥ . कठिन शब्दार्थ - अथिरासणे - अस्थिर आसन, कुक्कुइए - कौत्कुच्य भांडों (विदूषकों) जैसी कुचेष्टा, जत्थ तत्थ - जहां तहां, णिसीयइ - बैठता है, आसणम्मि - आसन में, अणाउत्ते - अनायुक्त-विवेक रहित। भावार्थ - अस्थिर आसन वाला, कुचेष्टा करने वाला अथवा अयतना पूर्वक हाथ-पाँव इधर-उधर हिलाने वाला, सचित्त-अचित्त का विचार किये बिना जहाँ तहाँ बैठ जाने वाला और आसनादि के विषय में उपयोग न रखने वाला पापश्रमण कहलाता है। ससरक्खपाए सुवइ, सेज्जं ण पडिलेहइ। संथारए अणाउत्ते, पावसमणे त्ति वुच्चइ॥१४॥ कठिन शब्दार्थ - ससरक्खपाए - रज से भरे पैरों से, सुवइ - सो जाता है, सेज्जं - शय्या का, ण.पडिलेहइ - प्रतिलेखन नहीं करता, संथारए - संस्तारक-बिछौना। भावार्थ - जो सचित्त रज से भरे हुए पाँव को पूंजे बिना ही शय्या की प्रतिलेखना भी नहीं करता है तथा संस्तारक के विषय में उपयोग नहीं रखता है ऐसा साधु पापश्रमण कहलाता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004180
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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