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________________ उत्तराध्ययन सूत्र - सत्तरहवां अध्ययन पैर पौंछने का कम्बल का - टुकड़ा, आसन, णिसिज्जं - निषद्या - स्वाध्याय भूमि, पायकंबलं अप्पमज्जिय • प्रमार्जन किए बिना ही, आरुहइ - बैठता है । भावार्थ संस्तरक तृणादि की शय्या, फलक बाजोठ (पाटा), पीढ़ा (आसन) स्वाध्याय करने का स्थान तथा पाँव पोंछने का वस्त्र, इन सभी पर जो बिना पूंजे बैठता है अर्थात् धर्मोपकरण को बिना पूंजे उपयोग में लेता है, वह पापश्रमण कहलाता है। विवेचन जो रजोहरण से प्रमार्जन किये बिना ही अयतनापूर्वक पाट, पीठ आदि पर बैठ जाता है, वह जीव हिंसा के पाप का भागी होता है, अतः उसे 'पापश्रमण' कहा गया है। दवदवस चरइ, पमत्ते य अभिक्खणं । उल्लंघणे य चंडेय, पावसमणे त्ति वुच्चइ ॥ ८ ॥ २६६ **** - - Jain Education International - कठिन शब्दार्थ - दक्दवस्स द्रवं - द्रवं - पैरों से दब दब आवाज करता हुआ, जल्दी जल्दी, चरइ चलता है, पत्ते प्रमाद करता हुआ, अभिक्खणं बार बार, उल्लंघणे - उल्लंघन करता है, चंडे - चण्ड (क्रोधी ) । प्रमत्त भावार्थ - जो ईर्यासमिति का उपयोग रखे बिना अयतना पूर्वक दड़बड़ - दड़बड़ शीघ्रता से चलता है तथा धर्म-साधना में प्रमाद करता है और बारबार मर्यादा का उल्लंघन करता है अथवा बालक आदि का उल्लंघन कर चलता है और चण्ड- सुशिक्षा देने पर क्रोध करता है वह पापश्रमण कहलाता है। · - - - - १. अत्यधिक द्रुतगामी विवेचन प्रस्तुत गाथा में पापश्रमण के चार दुर्गुण बताये हैं शीघ्रताशीघ्र चलने वाला २. प्रमादी बार बार प्रमादाचरण करने वाला ३. मर्यादा - उल्लंघकश्रमण मर्यादाओं का उल्लंघन करने वाला ४. प्रचण्ड- क्रोधी - सुशिक्षा देने पर भी अति क्रोध करने वाला । पडिले पत्ते, अवउज्झइ पाय - कंबलं । पडिलेहा - अणाउत्ते, पावसमणे त्ति वुच्च ॥ ६ ॥ कठिन शब्दार्थ - पडिलेहेइ - प्रतिलेखन करता है, अवउज्झइ है, पायकंबलं अणाउत्ते - - जहां तहां डाल देता पादकम्बल अथवा पात्र और कम्बल को, पंडिलेहा - प्रतिलेखना में, अनायुक्त है - उपयोगशून्य है । भावार्थ - जो प्रमाद युक्त हो कर बिना उपयोग पडिलेहणा करता है और पाँव पोंछने के *** - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004180
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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