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________________ २५४ उत्तराध्ययन सूत्र - चौदहवां अध्ययन । *ktikdaikikikikikattrikRRitiktikdaikikakkartititiktiktikdakit वमन किये पदार्थ को ग्रहण करना प्रशंसनीय नहीं ___वंतासी पुरिसो रायं!, ण सो होइ पसंसिओ। - माहणेण परिच्चत्तं, धणमादाउमिच्छसि॥३८॥ . कठिन शब्दार्थ - वंतासी - वमन किये हुए को खाने वाला, पसंसिओ - प्रशंसनीय, माहणेण - ब्राह्मण के द्वारा, परिच्चत्तं - परित्यक्त, धणं - धन को, आदाउं - ग्रहण करने . की, इच्छसि - इच्छा करते हो। .. भावार्थ - हे राजन्! ब्राह्मण द्वारा छोड़े हुए धन को आप ग्रहण करना चाहते हैं, परन्तु आपको यह मालूम होना चाहिए कि वमन किये हुए पदार्थ को खाने वाला पुरुष प्रशंसित नहीं होता, अपितु उसकी सर्वत्र निन्दा ही होती है। तृष्णा दुष्पूर है सव्वं जगं जइ तुहं, सव्वं वा वि धणं भवे। सव्वं वि ते अपजत्तं, णेव ताणाय तं तव॥३६॥ कठिन शब्दार्थ - सव्वं - सर्व, जगं - जगत्, जइ - यदि, तुहं - तुम्हारा, भवे - हो जावे, अपजत्तं - अपर्याप्त, ताणाय - रक्षा के लिए, तव - तुम्हारी। ____भावार्थ - हे राजन्! यदि यह सारा जगत् तुम्हारा हो जाय अथवा संसार का सारा धन तुम्हारा हो जाय तो भी ये सब तुम्हारे लिए अपर्याप्त ही हैं अर्थात् संसार के सारे पदार्थ भी तुम्हारी तृष्णा को पूर्ण करने में असमर्थ ही हैं क्योंकि तृष्णा आकाश के समान अनन्त हैं और धन असंख्यात ही है, यह धन जन्म-मृत्यु के कष्टों से तुम्हारी रक्षा नहीं कर सकता। . धर्म ही मनुष्य का रक्षक है मरिहिसि रायं! जया तया वा, मणोरमे कामगुणे पहाय। इक्को हु धम्मो णरदेव! ताणं, ण विज्जइ अण्णमिहेह किंचि॥४०॥ कठिन शब्दार्थ - मरिहिसि - मरोगे, जया - जब, तया - तब, मणोरमे - मनोज्ञ, कामगुणे - कामभोगों को, इक्को - एक, धम्मो - धर्म, णरदेव - हे नरदेव!, ताणं - शरण रूप, ण विजड़ - रक्षक नहीं है, अण्णं - अन्य, किंचि - कोई भी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004180
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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