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... इषुकारीय - कमलावती रानी द्वारा राजा को प्रतिबोध
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भावार्थ - यशा अपने मन में विचार करती है कि जिस प्रकार क्रौंच पक्षी अनेक प्रदेशों को उल्लंघन करते हुए आकाश में उड़ जाते हैं और हंस, विस्तीर्ण जालों को भेदन कर के अपनी इच्छानुसार आकाश में उड़ जाते हैं इसी प्रकार मेरे, दोनों पुत्र और पति सांसारिक बन्धनों को तोड़ कर एवं काम-भोगों को छोड़ कर त्याग-मार्ग अंगीकार कर रहे हैं, ऐसी अवस्था में मैं भी उनके साथ क्यों नहीं अनुसरण करूं (जाऊँ) अर्थात् मैं अकेली पीछे रह कर क्या करूं?
- विवेचन - भृगु पुरोहित, उसकी भार्या यशा और दोनों कुमार इन चारों की एक सम्मति हो गई। अपना घर बार एवं संपत्ति छोड़ कर वे चारों ही दीक्षा लेने के लिए घर से निकल गये। उनकी संपत्ति का कोई उत्तराधिकारी न होने के कारण वह सब राज्य भंडार में लाई जाने लगी।
कमलावती रानी द्वारा राजा को प्रतिबोध पुरोहियं तं ससुयं सदारं, सोचाऽभिणिक्खम्म पहाय भोए।
कुडुंबसारं विउलुत्तमं च, रायं अभिक्खं समुवाय देवी॥३७॥ . ..कठिन शब्दार्थ - पुरोहियं - पुरोहित, ससुयं - पुत्रों के साथ, सदारं - पत्नी के साथ, सोच्चा - सुन कर, अभिणिक्खम्म - अभिनिष्क्रमण किया है, पहाय - त्याग कर, भोए - भोगों को, कुडुंबसारं - 'कुटुम्ब और सार-प्रधान धन की, विउल - विपुल, उत्तम - उत्तम, .रायं - राजा को, अभिक्खं - बार-बार, समुवाय- कहा, देवी - कमलावती पटरानी।
भावार्थ - समस्त काम-भोगों का त्याग करके भृग पुरोहित अपने दोनों पुत्रों और स्त्री के साथ दीक्षा अंगीकार करने के लिए घर-बार छोड़ कर निकल गया है यह बात सुन कर तथा उनकी विपुल एवं विस्तीर्ण धन-सम्पत्ति को राजा लेना चाहता है, यह बात जान कर उसकी पटरानी, कमलावती बार-बार राजा को इस प्रकार कहने लगी। ____ विवेचन - इस गाथा में प्राचीन कालिक एक सामाजिक परम्परा का उल्लेख मिलता है कि - जिस व्यक्ति का कोई उत्तराधिकारी नहीं होता था या जिसका सारा परिवार घर बार छोड़ कर मुनि बन जाता था उसकी धन सम्पत्ति पर राजा का अधिकार होता था। इस परम्परा को रानी कमलावती ने अप्रशंसनीय (निंदनीय) बता कर राजा की वृत्ति को मोड़ दे दिया। जिसका वर्णन अगली गाथाओं में हैं।
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