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उत्तराध्ययन सूत्र - चौदहवां अध्ययन
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कुमारों का प्रतिवाद - बंध संसार का हेतु णो इंदियग्गेज्झ अमुत्तभावा, अमुत्तभावा.वि य होइ णिच्चो। अज्झत्थ-हे णिययऽस्स बंधो, संसार-हेउं च वयंति बंधं ॥१६॥
कठिन शब्दार्थ - इंदियग्गेज्झ - इन्द्रियों से ग्राह्य, अमुत्तभावा - अमूर्तभाव - अरूपी होने से यह आत्मा, णिच्चो - नित्य, अज्झत्थहेडं - अध्यात्म हेतु, णियय - नियत - निश्चय ही, अस्स - इस आत्मा के, बंधो - बन्ध, संसार हेउं - संसार का हेतु, वयंति - कहते हैं। • भावार्थ - कुमार कहते हैं कि हे पिताजी! अमूर्त होने के कारण यह आत्मा इन्द्रियों से ग्रहण नहीं किया जा सकता अर्थात् अरूपी होने के कारण यह आत्मा प्रत्यक्ष दिखाई नहीं देता
और अरूपी होने से ही यह आत्मा नित्य है, क्योंकि जो जो पदार्थ अरूपी होते हैं वे सब नित्य होते हैं जैसे आकाश, अध्यात्म हेतु (मिथ्यात्वादि) निश्चय ही इस आत्मा के बन्ध के कारण हैं। अर्थात् यह आत्मा अमूर्त एवं नित्य होने पर भी मिथ्यात्वादि कारणों से कर्मों के बन्धन में बन्धा हुआ हैं और यही बन्धन संसार परिभ्रमण का कारण है, ऐसा महापुरुष फरमाते हैं।
विवेचन - आत्मा अमूर्त होने से इन्द्रियों के द्वारा जानी नहीं जाती किन्तु उसका नित्य अस्तित्व है। मिथ्यात्व, अविरति आदि के कारण ही आत्मा का शरीर में बंध होता है, ये कर्म ही भव भ्रमण का कारण हैं।
जहा वयं धम्ममजाणमाणा, पावं पुरा कम्म-मकासी मोहा।
ओरुब्भमाणा परिरक्खयंता, तं णेव भुजो वि समायरामो॥२०॥
कठिन शब्दार्थ - धम्मं - धर्म को, अजाणमाणा - नहीं जानते हुए, पावं - पाप, पुरा - पहले, कम्मं - कर्म को, अकासी - करते थे, ओरुब्भमाणा - रोके हुए, परिरक्खयंतासुरक्षित किये हुए, भुजो वि - कदापि, समायरामो - सेवन करेंगे। ___भावार्थ - वे दोनों कुमार कहते हैं कि हे पिताजी! जिस प्रकार मोह के वश होकर धर्म को न जानते हुए हम पहले पाप कर्म करते थे और आपके रोके हुए तथा सब प्रकार से सुरक्षित किये हुए हम घर से बाहर भी नहीं निकल सकते थे परन्तु अब हम उस पापकर्म का कदापि सेवन नहीं करेंगे।
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