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________________ चित्तसंभूतीय - दोनों का मिलन . २१६ kakkkkkkkkkkkkkkattartiatrikakaitarikaartikkakakakakakakkark** कहे गये हैं। इस भव में संभूत का नाम ब्रह्मदत्त है और चित्त का नाम गुणसार है जो कि पुरिमताल नगर के सेठ धनसार का पुत्र है। - . दोनों का मिलन कंपिल्लम्मि य णयरे, समागया दो वि चित्त-संभूया। सुह-दुह-फल-विवागं, कहेंति ते इक्कमिक्कस्स॥३॥ कठिन शब्दार्थ - समागया - इकट्ठे मिले, सुह - सुख, दुह - दुःख, फलविवागंफल विपाक को, कहेंति - कहने लगे, इक्कमिक्कस्स - परस्पर एक दूसरे को। भावार्थ- - कंपिलपुर नगर में चित्त और संभूत दोनों ही एकत्रित हुए और वे परस्पर एक दूसरे को अच्छे बुरे कर्मों के सुख-दुख फल-विपाक कहने लगे। चक्कवट्टी महिहिओ, बंभदत्तो महायसो। भायरं बहमाणेणं, इमं वयणमब्बवी॥४॥ कठिन शब्दार्थ - चक्कवट्टी - चक्रवर्ती, महिहिओ - महार्द्धिक महान् ऋद्धि वाले, महायसों - महान् यशस्वी, भायरं - भाई का, बहुमाणेणं - बहुमान पूर्वक, इमं - इस प्रकार, वयणं - वचन, अब्बवी - कहे। भावार्थ - महा ऋद्धिशाली, महातपस्वी ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती बहुमानपूर्वक अपने पूर्व-भव के भाई चित्त को इस प्रकार वचन कहने लगा। आसीमो भायरा दो वि, अण्णमण्णवसाणुगा। अण्णमण्णमणुरत्ता, अण्णमण्णहिएसिणो॥५॥ कठिन शब्दार्थ - आसि - थे, इमो - हम, अण्णमण्णवसाणुगा - परस्पर (एक दूसरे के) वशवर्ती, अण्णमण्णमणुरत्ता - परस्पर अनुरक्त, अण्णमण्णहिएसिणो - परस्पर हितैषी। __ भावार्थ - अपन दोनों ही एक दूसरे के वश रहने वाले, एक-दूसरे से प्रेम करने वाले और एक-दूसरे का हित चाहने वाले भाई थे। दासा दसण्णे आसी, मिया कालिंजरे णगे। हंसा मयंगतीराए, सोवागा कासिभूमिए॥६॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004180
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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