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________________ क्रं. विषय चित्तसंभूतीय नामक तेरहवां अध्ययन २१८-२३३ १६६. संभूत एवं चित्त का परिचय १६७. दोनों का मिलन २१८ २१६ २२२ १६८. चक्रवर्ती का समृद्धि वर्णन १६६. चक्रवर्ती द्वारा मुनि को भोगों का आमंत्रण २२२ २००. मुनि द्वारा भोगों को छोड़ने का उपदेश २२४ २०१. विषयजन्य सुख की लघुता .२०२. धर्माचरण न करने वालों के लिए हानि २२६ २०३. मृत्यु के समय कोई रक्षक नहीं २२४ २२६ .२२७ २२८ २२८ २२६ २३० २३१ २३१ - २३२ २३२ २३२ २०४. एकत्व भावना २०५. मृत्यु के पश्चात् शरीर की गति २०६. धर्माचरण का उपदेश २०७. निदान की भयंकरता २०८. हाथी का दृष्टान्त २०६. कामभोगों की अनित्यता २१०. आर्य कर्म करने की प्रेरणा २११. चित्तमुनि का विहार २१२. ब्रह्मदत्त का नरक गमन २१३. चित्त का मुक्ति गमन उपसंहार इषुकारीय नामक चौदहवाँ अध्ययन २३४-२६० २१४. छह जीवों का परिचय २१५. संसार विरक्त पुरोहित पुत्रों का वर्णन २१६. पुत्रों द्वारा दीक्षा की अनुमति मांगना २१७. पिता का पुत्रों को प्रलोभन [21] Jain Education International पृष्ठ क्रं. विषय २१८. पुत्रों का पिता को समाधान २१. भृगु पुरोहित का कथन - श्रमणक्यों बनना चाहते हो? २३५ २३६ २३७ २३६ २२०. कुमारों का प्रतिवाद २२१. भृगु पुरोहित का कथन - जीव काअस्तित्व निषेध २३१. तृष्णा दुष्पूर है २३२. धर्म ही मनुष्य का रक्षक है २३३. कमलावती की प्रव्रज्या की भावना २३४. रागद्वेषाग्नि से संसार जल रहा है २४३ २२२. कुमारों का प्रतिवाद - बंध संसार का हेतु २४४ २२३. पुत्रों का उत्तर २४५ २४७ २२४. भविष्य में हम साथ ही दीक्षा लेंगे? २२५. पुत्रों के बिना मेरा गृहवास अनुचित २२६. कामगुणों के तीन विशेषण २४८ २४६ २५१ २२७. पत्नी की शंकाओं का समाधान २२८. पुरोहित पत्नी दीक्षा लेने को तैयार २५२ २२६. कमलावती रानी द्वारा राजा को प्रतिबोध २५३ २३०. वमन किये पदार्थ को ग्रहण करना प्रशंसनीय नहीं २३५. विवेकी पुरुष का कर्त्तव्य २३६. त्याग में सुख है *** २३७. कामभोग, संसार वर्द्धक २३८. मोक्ष, स्वस्थान है पृष्ठ २४० For Personal & Private Use Only २४२ २४२ २५७ २५७ २५८ २५८ २३६. राजा और रानी त्यागी हुए २४०. तप संयम में पराक्रमी बने २५८ २४१. छहों को विरक्ति, दीक्षा और मुक्ति २५६ २४२. उपसंहार २६० २५४ २५४ २५ २५: २५. २५ ६ www.jainelibrary.org
SR No.004180
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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