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________________ बहुश्रुतपूजा - बहुश्रुतता की प्राप्ति के कारण बहुश्रुतता की प्राप्ति के कारण अह अट्ठहिं ठाणेहिं, सिक्खासीलेत्ति वुच्चइ | अहस्सिरे सया दंते, ण य मम्म- मुदाहरे ॥ ४ ॥ णासीले ण विसीले ण सिया अइलोलुए। अकोहणे सच्चरए, सिक्खासीले त्ति वुच्च ॥ ५ ॥ कठिन शब्दार्थ - अट्ठहिं आठ, सिक्खास रुचि हो अथवा जो शिक्षा का अभ्यास करता हो, अहस्सिरे होने पर भी जिसका स्वभाव हंसी मजाक करने का न हो, सया सदा, दंते - दान्त इन्द्रियों और मन का दमन करने वाला, मम्म- मुदाहरे - मर्मोद्घाटन करने वाला, णासीले अशील न हो, ण विसीले - विशील - अतिचारों से कलंकित चारित्र वाला न हो, अइलोलुए - अति लोलुप, अकोहणे - क्रोध रहित, सच्चरए सत्यरत, वुच्चइ कहलाता है। शिक्षाशील - शिक्षा में जिसकी अकारण या कारण उपस्थित भावार्थ आठ स्थानों से यह आत्मा शिक्षाशील (शिक्षा के योग्य) कहा जाता है, अधिक नहीं हंसने वाला, इन्द्रियों का दमन करने वाला और मर्म वचन न कहने वाला, सर्वतः चारित्र की विराधना न करने वाला ( चारित्र धर्म का पालन करने वाला सदाचारी), देशतः भी चारित्र की विराधना नहीं करने वाला अर्थात् व्रतों का निरतिचार पालन करने वाला और जो अतिशय लोलुप नहीं है तथा जो क्रोध-रहित और सत्यानुरागी (सत्यनिष्ठ) है, वह शिक्षाशील कहा जाता है। - Jain Education International - → विवेचन - उपर्युक्त दोनों गाथाओं में शिक्षाशील के आठ स्थान बतलाये गये हैं - १. जो सदा हंसी मजाक न करे २. जो दान्त हो ३. जो दूसरों का मर्मोद्घाटन नहीं करे ४. जो सर्वथा चारित्रहीन न हो ५. जो दोषों- अतिचारों से कलंकित व्रत चारित्र वाला न हो ६. जो अत्यंत रसलोलुप न हो ७. जो निरपराध या अपराधी पर भी क्रोध न करता हो ८. जो सत्य (संयम) में रत हो । ' इन आठ गुणों से युक्त शिक्षाशील कहलाता है। अविनीत का लक्षण अह चोद्दसहि ठाणेहिं, वट्टमाणे उ संजए । अविणीए वुच्चइ सो उ, णिव्वाणं च ण गच्छड़ ॥ ६ ॥ For Personal & Private Use Only १७६ **** - www.jainelibrary.org
SR No.004180
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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