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उत्तराध्ययन सूत्र - ग्यारहवां अध्ययन ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
भावार्थ - जो विद्या रहित है और विद्या-सहित भी है एवं अभिमानी रसादि में गृद्ध अजितेन्द्रिय, अविनीत है तथा बार-बार असम्बद्ध भाषण करता है, वह अबहुश्रुत है।
विवेचन - प्रस्तुत गाथा में अबहुश्रुत का स्वरूप बताया गया है। यहाँ अवि - अपि शब्द के आधार पर विद्यावान् का भी उल्लेख किया गया है अर्थात् विद्यावान् होते हुए भी स्तब्धता, लुब्धता, अजितेन्द्रियता, असंबद्ध भाषिता एवं अविनीतता आदि दोषों से जो युक्त है वह भी ‘अबहुश्रुत' कहा गया है अर्थात् विनयादि गुण न होने से विद्यावान् को भी यहाँ 'अबहुश्रुत' कहा गया है।
शिक्षा प्राप्त नहीं होने के कारण अह पंचहिं ठाणेहिं. जेहिं सिक्खा ण लब्भइ।.. थंभा कोहा पमाएणं, रोगेणालस्सेण य॥३॥
कठिन शब्दार्थ - पंचहिं - पांच, ठाणेहिं - स्थानों (कारणों) से, जेहिं - इन, सिक्खा - शिक्षा, ण लब्भइ - प्राप्त नहीं होती, थंभा - मान, कोहा - क्रोध, पमाएणं - प्रमाद से, रोगेण - रोग से, आलस्सेण - आलस्य से।
भावार्थ - मान, क्रोध, प्रमाद, रोग और आलस्य इन पांच कारणों से शिक्षा प्राप्त नहीं होती।
विवेचन - इस गाथा में शिक्षा प्राप्त नहीं होने के पांच कारण बताये गये हैं - १. अभिमान २. क्रोध ३. प्रमाद ४. रोग और ५. आलस्य। प्रमाद के मुख्य ५ भेद हैं - मद्य, विषय, कषाय, निद्रा और विकथा। यों तो आलस्य का भी प्रमाद में समावेश है किन्तु यहाँ आलस्य-लापरवाही, उपेक्षा या उत्साह हीनता के अर्थ में है। कुछ भी कार्य नहीं करते हुए निरर्थक समय को गंवाना 'आलस्य' कहलाता है। संसार संबंधी किसी भी कार्यों में प्रवृत्ति करना 'प्रमाद' कहलाता है।
शिक्षा दो प्रकार की कही गयी हैं - १. ग्रहण शिक्षा - गुरु से शास्त्रीय ज्ञान प्राप्त करना और २. आसेवन शिक्षा - गुरु के सान्निध्य में रह कर तदनुसार आचरण एवं अभ्यास करना। अभिमान आदि उपर्युक्त पांच कारण इन दोनों शिक्षाओं की प्राप्ति में बाधक है। जो शिक्षाशील होता है वही बहुश्रुत होता है। अतः आगे की गाथाओं में शिक्षा शील के आठ स्थानों (कारणों) का वर्णन किया जाता है।
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