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________________ द्रुमपत्रक - वनस्पतिकाय की कायस्थिति जीव वायुकाय में जन्म मरण के चक्र को प्राप्त हो चुके हैं उनका वहाँ से निकलना बहुत ही कठिन हो जाता है अतएव बुद्धिमान् पुरुष धर्माचरण में कभी प्रमाद न करे । वायु का रूप यद्यपि चक्षुः प्रत्यक्ष नहीं तथापि स्पर्शनेन्द्रिय के द्वारा ग्राह्य एवं आगम और युक्ति से वह सिद्ध अवश्य है । वनस्पतिकाय की कायस्थिति वणस्सइकायमइगओ, उक्कोसं जीवो उ संवसे । कालमणंत दुरंतं, समयं गोयम ! मा पमायए ॥ ६ ॥ कठिन शब्दार्थ - वणस्सइकायं - वनस्पतिकाय में, अनंत जिसका अंत हो सके । दुःख से भावार्थ - वनस्पतिकाय में गया हुआ जीव इसी काय में उत्कृष्ट दुःख से अन्त होने वाले अनन्त काल तक ( अनन्त उत्सर्पिणी - अवसर्पिणी प्रमाण काल तक ) रहता है, गौतम! समय मात्र भी प्रमाद मत कर। अतएव हे - अनन्त, दुरंतं विवेचन - कर्मवश वनस्पतिकाय को प्राप्त हुआ जीव इसमें अनन्तकाल तक निवास कर सकता है और वहाँ से इसका निकलना बहुत ही कठिन हो जाता है। प्रज्ञापना सूत्र के अठारहवें कायस्थिति पद में लिखा है - १६१ ***** सुहुम वणस्सइक्काइए सुहुमणिगोएवि जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं असंखेज्जकाल असंखेज्जाओ उस्सप्पिणीओ कालओ खेत्तओ असंखेज्जा लोगा । बायर वणस्सइक्काइए बायर पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं असंखेज्जकालं ज़ाव खेत्तओ अंगुलरस असंखेज्जइ भागं । पत्तेय सरीर बायर वणस्सइक्काइयाणं पुच्छा ? Jain Education International • गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं सत्तरिकोडाकोडीओ । णिगोदेणं भंते! णिगोदे जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं अनंतं कालं अनंताओ ओसप्पिणीओ कालओ खेत्तओ अढाइज्जा पोग्गल परियट्टा । बायर निगोदेणं भंते! बायर पुच्छा? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं सत्तरि कोडाकोडीओ । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004180
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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