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________________ १६० उत्तराध्ययन सूत्र - दसवां अध्ययन ******************kakakakakakakakakkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk** भावार्थ - अप्काय में गया हुआ जीव इस काय में उत्कृष्ट संख्यातीत अर्थात् असंख्यात काल तक रहता है, अतएव हे गौतम! समय मात्र भी प्रमाद मत कर। विवेचन - इस गाथा में स्पष्ट किया गया है कि यदि जीव अप्काय में चला गया और उसी में जन्म मरण करने लग गया तो असंख्यात काल पर्यन्त उसी में जन्म मरण करता रहता है। अतः इस मनुष्य जन्म को प्राप्त करके धर्माचरण के लिए पुरुषार्थ करते रहना चाहिये और समय मात्र का भी प्रमाद नहीं करना चाहिये। तेजस्काय की कायस्थिति तेउक्कायमइगओ, उक्कोसं जीवो उ संवसे। कालं संखाईयं, समयं गोयम! मा पमायए॥७॥ कठिन शब्दार्थ - तेउक्कायं - तेजस्काय में। भावार्थ - तेउकाय में गया हुआ जीव इसी काय में उत्कृष्ट संख्यातीत अर्थात् असंख्यात काल तक रहता है। अतएव हे गौतम! समय मात्र भी प्रमाद मत कर। . विवेचन - तेजस्काय में दाहकत्व शक्ति गुण होने से जीवत्व - जीवपन भी प्रमाण सिद्ध है। यदि उसमें जीवत्व न होवे तो दाहकता भी न होवेगी और दाहकत्व गुण से ही तेजस्कायरूपता की स्थिति है। यह तेजस्काय असंख्यात जीवों का पिण्ड रूप - समूह रूप होता है। सूक्ष्म और बादर तेजस्काय की जो असंख्यात काल की स्थिति वर्णन की गई है, उसमें बादर तेजस्काय तो केवल अढाई द्वीप प्रमाण में ही होती है जबकि सूक्ष्म तेजस्काय तो सारे लोक में व्याप्त है। वायुकाय की कायस्थिति वाउक्कायमइगओ, उक्कोसं जीवो उ संवसे। कालं संखाईयं, समयं गोयम! मा पमायए॥८॥ कठिन शब्दार्थ - वाउक्कायं - वायुकाय में। भावार्थ - वायुकाय में गया हुआ जीव इसी काय में उत्कृष्ट संख्यातीत अर्थात् असंख्यात काल तक रहता है। अतएव हे गौतम! समय मात्र भी प्रमाद मत कर। विवेचन - वायुकाय की कायस्थिति भी उत्कृष्ट असंख्यात काल की कही गई है। जो Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004180
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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