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________________ नमि प्रव्रज्या - इन्द्र का असली रूप में प्रकट होना १५१ *********kakakakakakakakakakkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk** और भावी विषयों में निस्पृह हो कर विषयभोग का त्याग किया है। मुमुक्ष को किसी भोग पदार्थ की अभिलाषा नहीं होती। अहे वयइ कोहेणं, माणेणं अहमा गई। माया गइपडिग्घाओ, लोहाओ दुहओ भयं॥५४॥ कठिन शब्दार्थ - अहे - नीच (नरक गति) में, वयइ - जाता है, कोहेणं - क्रोध से, माणेणं - मान से, अहमा - अधर्म, गई - गति, माया - माया से, गइपडिग्याओ - सद्गति का विनाश, लोहाओ - लोभ से, दुहओ - दोनों लोकों में, भयं - भय। भावार्थ - क्रोध करने से जीव नरक गति में जाता है, मान से नीच गति प्राप्त होती है, माया से शुभ गति का नाश होता है और लोभ से इस लोक और परलोक का भय प्राप्त होता है। विवेचन - प्रस्तुत गाथा में नमि राजर्षि ने चारों कषायों के दुष्परिणामों का कथन किया है। ___इन्द्र का असली रूप में प्रकट होना अवउज्झिऊण माहणरूवं, विउव्विऊण इंदत्तं। वंदइ अभित्थुणंतो, इमाहिं महुराहिं वगूहिं॥५५ ।। कठिन शब्दार्थ - अवउज्झिऊण - छोड़कर, माहणरूवं - ब्राह्मण का रूप, विउविऊण. वैक्रिय शक्ति से धारण करके, इंदत्तं - इन्द्र रूप को, वंदइ - वंदना करता है, अभित्थुणंतोस्तुति करता हुआ, महुराहिं - मधुर, वग्गूहिं - वचनों से। . भावार्थ - इस प्रकार दस प्रश्न करके अनेक उपायों से जब देवेन्द्र नमि राजर्षि को अपने धर्म से लेश मात्र भी नहीं डिगा सका तब देवेन्द्र ने ब्राह्मण का रूप त्याग किया और विक्रिया द्वारा अपना इन्द्र का रूप बना कर इन आगे कहे जाने वाले मधुर वचनों से नमिराज की स्तुति करता हुआ वंदना नमस्कार करने लगा। विवेचन - इस गाथा में धर्म पर दृढ़ रहने वाले आस्तिक पुरुषों को अन्त में देवता तक भी वंदन करते हैं, यह भाव ध्वनित किया गया है। - जब देवेन्द्र किसी भी प्रकार से नमि राजर्षि को अपने विशुद्ध भावों से रत्ती भर भी विचलित नहीं कर सका तब उसने उत्तर वैक्रिय रूप लब्धि के द्वारा अपने नकली ब्राह्मण वेष का त्याग करके असली इन्द्र रूप को धारण कर लिया और आगे लिखे मधुर वचनों से स्तुति करते हुए नमि राजर्षि को वंदन किया। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004180
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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