SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 171
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४२ उत्तराध्ययन सूत्र - नौवां अध्ययन • ********************kakakakakirtikkkkkkkkkkkkk**************** संसयं खलु सो कुणइ, जो मग्गे कुणइ घरं। जत्थेव गंतुमिच्छेजा, तत्थ कुग्विज सासयं ॥२६॥ कठिन शब्दार्थ- संसयं - संशय, कुणइ - करता है, जत्थेव - जहाँ पर, गंतुं - जाने की, कुविज - घर बनावे, सासयं - शाश्वत। भावार्थ - जो पुरुष संशय करता है कि 'मैं गन्तव्य स्थान तक पहुँचूंगा या नहीं' वही पुरुष मार्ग में घर बनाता है, किन्तु मेरे मन में संदेह नहीं हैं, क्योंकि सम्यग् ज्ञान-दर्शन-चारित्र रूप रत्न-त्रय से अवश्य मोक्ष होता है, ऐसा मुझे निश्चय है और मैं इसका पालन कर रहा हूं। मेरा नियत स्थान मोक्ष है। बुद्धिमान् पुरुष को चाहिए कि जहाँ पर जाने की इच्छा हो वहीं पर अपना स्थायी घर बनावें। विवेचन - नमिराज ब्राह्मण से कहते हैं कि आपने मुझे विविध प्रासाद आदि बनाने के लिए कहा। किन्तु मेरा यहाँ रहना तो मार्ग के पड़ाव के समान है। मेरा गन्तव्य शाश्वत स्थान तो मुक्ति है। रास्ते में पड़ाव के स्थान पर घर बनाना बुद्धिमत्ता नहीं है। बुद्धिमान् को तो अपने इष्ट स्थान पर पहुँच कर घर बनाना चाहिये, जहाँ उसे सदा रहना है। पांचवां प्रश्न - नगर की सुरक्षा विषयक एयमढें णिसामित्ता, हेउकारणचोइओ। ।। तओ णमि रायरिसिं, देविंदो इणमब्बवी॥२७॥ भावार्थ - नमि राजर्षि के उत्तर देने के बाद पूर्वोक्त अर्थ सुन कर हेतु और कारण से प्रेरित हुए देवेन्द्र ने नमिराजर्षि से यह कहा। आमोसे लोमहारे य, गंठिभेए य तक्करे। णगरस्स खेमं काऊणं, तओ गच्छसि खत्तिया॥२८॥ कठिन शब्दार्थ - आमोसे - चोरी करने वाले, लोमहारे - प्राणघात करने वाले, गंठिभेए - गांठ कतरने वाले, तक्करे - तस्करों, णगरस्सं - नगर के, खेमं - क्षेम - अमनचैन, काऊणं - करके। भावार्थ - डाका डालने वाले और निर्दयता पूर्वक लोगों को मार कर उनका सर्वस्व लूटने वाले, गांठ कतरने वाले और चोर (गुप्त रूप से धन हरण करने वाले), इनको दण्ड द्वारा वश में करके और इनसे नगर की सुरक्षा कर के हे क्षत्रिय! इसके बाद तुम दीक्षा लेना। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004180
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy