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________________ नमि प्रव्रज्या - चौथा प्रश्न-प्रासाद, गृहादि निर्माण विषयक १४१ ************************************************************ . प्राप्ति हो जाती है। इसलिए हे ब्राह्मण! जो तुमने कोट-किले आदि बनाने का कहा है वे सब मैंने पहले ही बना रखे हैं। इस प्रकार के कोट-किलों से शारीरिक और मानसिक समस्त दुःखों से शीघ्र मुक्ति हो सकती है। किन्तु तुम्हारे कथनानुसार कोट किले आदि बनवाने से मुक्ति नहीं हो सकती। चौथा प्रश्न - प्रासाद, गृहादि निर्माण विषयक एयमटुं णिसामित्ता, हेउ कारण चोइओ। तओ णमिं रायरिसिं, देविंदो इणमब्बवी॥२३॥ भावार्थ - नमि राजर्षि के उत्तर. देने के बाद पूर्वोक्त अर्थ सुन कर हेतु और कारण से प्रेरित हुए देवेन्द्र ने नमिराजर्षि से यह कहा। पासाए कारइत्ताणं, वद्धमाणगिहाणि य। वालग्गपोइयाओ य, तओ गच्छसि खत्तिया॥२४॥ कठिन शब्दार्थ - पासाए - प्रासाद को, कारइत्ताणं - बनवा कर, वद्धमाण गिहाणिवर्द्धमान गृह, वालग्गपोइयाओ - वलभी (चन्द्रशालाएं) बनवा कर। भावार्थ - हे क्षत्रिय! प्रासाद (भवन) और वास्तुशास्त्र में बतलाये हुए अनेक प्रकार के छोटे बड़े पर और जलक्रीड़ा करने के लिए तालाब के बीच में क्रीड़ागृह आदि बनवा कर उसके बाद प्रव्रज्या धारण करना तुम्हें योग्य है। - विवेचन - वालग्गपोइयाओ - 'वालग्गपोइया' देशी शब्द हैं उसका 'वलभी' अर्थ टीकाकारों ने किया है। वर्तमान में उसे चन्द्रशाला या तालाब के मध्य में निर्मित छोटा महल, जल महल या हवा महल कह सकते हैं। नमि राजर्षि का उत्तर एयमढें णिसामित्ता, हेउकारणचोइओ। तओ णमी रायरिसी, देविंदं इणमब्बवी॥२५॥ भावार्थ - शक्रेन्द्र का पूर्वोक्त अर्थ - प्रश्न सुन कर हेतु और कारण से प्रेरित हुए नमी राजर्षि, देवेन्द्र से इस प्रकार कहने लगे। . . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004180
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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