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________________ १२४ उत्तराध्ययन सूत्र - आठवां अध्ययन addddddddddddddddddddddddddddddddddddddd★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★ कठिन शब्दार्थ - सुद्धसणाओ - शुद्ध एषणा को, णच्चा णं - जान कर, ठवेज - स्थापित करे, अप्पाणं - अपनी आत्मा को, जायाए - संयम यात्रा के लिए, घासं - आहार की, एसिज्जा - गवेषणा करे, रसगिद्धे - रस में मूर्च्छित, ण सिया - नहीं होवें। . भावार्थ - साधु, उद्गम-उत्पादनादि दोषों से रहित शुद्ध एषणा को जान कर उसमें अपनी आत्मा को स्थापित करे अर्थात् एषणा के दोषों को टाल कर शुद्ध एषणा से आहार प्राप्त करे। भिक्षा से निर्वाह करने वाला साधु संयम-यात्रा का निर्वाह करने के लिए आहार की गवेषणा करे किन्तु रसों में गृद्धिभाव वाला न होवे। - विवेचन - इस गाथा में साधु की एषणा समिति का वर्णन किया गया है। साधु उद्गम, उत्पादना आदि के दोष रहित-निर्दोष भिक्षा का ग्रहण केवल संयम निर्वाहार्थ ही करे किन्तु शरीर को पुष्ट और बलवीर्य युक्त बनाने के लिए आहार का ग्रहण न करे तथा शुद्ध निर्दोष आहार के मिल जाने पर भी साधु उसके स्वादिष्ट रस आदि में भी मूर्च्छित न होवे किन्तु जैसे शकट (गाड़ी) के धुरा को भलीभांति चलाने के लिए तेल आदि चिकने पदार्थों को लगाते हैं और व्रण (घाव) आदि पर किसी औषधि विशेष का लेप करते हैं उसी प्रकार केवल शरीर को धर्म साधनार्थ टिकाए रखने के लिए स्वल्प आहार करे अर्थात् मनोहर आहार के मिल जाने पर उसमें मूर्छित होता हुआ अधिक आहार न करे। . इस विषयक आसक्ति के त्याग के पश्चात् साधु किस प्रकार के पदार्थों को ग्रहण करे। इसके विषय में कहते हैं - संयमशील साधु का आहार पंताणि चेव सेविजा, सीयपिंडं पुराण कुम्मासं। अदु बुक्कसं पुलागं वा, जवणट्ठाए णिसेवए मंथु॥१२॥ कठिन शब्दार्थ - पंताणि - नीरस आहार, सेविजा - सेवन करे, सीयपिंडं - शीत आहार, पुराण - पुराने, कुम्मासं - कुल्माषों का (मूंग, उड़द के बाकुले), बुक्कसं - बुक्कस - सारहीन भूसा (कोरमा), पुलागं - पुलाक-नीरस, जवणट्ठाए - संयम यात्रा के निर्वाह हेतु, णिसेवए - सेवन करे, मंथु - बेर या सत्तु का चूर्ण का। भावार्थ - प्रान्त (नीरस) आहार, ठंडा आहार और पुराने कुल्माष-उड़द आदि के बाकले Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004180
Book TitleUttaradhyayan Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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