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महानिर्ग्रन्थीय
बीसवाँ अध्ययन इस अध्ययन का नाम महानिर्ग्रन्थीय है किन्तु प्रसिद्धि में यह अध्ययन अनाथी मुनि के नाम से है। क्योंकि इस अध्ययन में मूल में सनाथी कौन और अनाथी कौन का स्वरूप समझाया गया है । संसारी लोग धन वैभव एवं परिवार से परिपूर्ण व्यक्ति को सनाथ मानते हैं। क्योंकि वे मानते हैं कि कष्टं आने पर ये हमारी रक्षा करने में समर्थ होंगे। पर ज्ञानी इसे सनाथ नहीं मानते क्योंकि रोगादि संकट आने पर स्वजन, धन, वैभव आदि उसकी रक्षा करने में समर्थ नहीं हो सकते हैं। प्रत्युत उसके पूर्वकृत शुभाशुभ ही उसे सनाथ अनाथ बना सकते हैं। राजा श्रेणिक और महामुनि के इस अध्ययन में सुन्दर संवाद दिया गया है। इतना ही नहीं जो मुनि बनकर अपने ग्रहण किये गये व्रतों का यथाविध पालन नहीं करते हों, वे भी अनाथ की श्रेणी में ही आते हैं।
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हमारे संघ द्वारा उत्तराध्ययन सूत्र तीन भागों में मूल अन्वयार्थ, संक्षिप्त विवेचन युक्त पूर्व में प्रकाशित हो रखा है। जिसका अनुवाद समाज के जाने माने विद्वान पं. र. श्री घेवरचन्दजी बांठिया न्याय व्याकरण तीर्थ, सिद्धान्त शास्त्री ने अपने गृहस्थ जीवन में किया था। जिसे स्वाध्याय प्रेमी श्रावक-श्राविका वर्ग ने काफी पसन्द किया । फलस्वरूप उक्त प्रकाशन की आठ आवृत्तियाँ संघ द्वारा प्रकाशित हो चुकी है। अतः संघ की आगम बत्तीस प्रकाशन योजना के अर्न्तगत इसका प्रकाशन किया जा रहा है। इसके अनुवाद का कार्य मेरे सहयोगी श्रीमान् पारसमलजी सा. चण्डालिया ने प्राचीन टीकाओं के आधार पर किया है। आपके अनुवाद को धर्मप्रेमी सुश्रावक श्रीमान् श्रीकांतजी गोलछा दल्लीराजहरा ने वर्तमान ज्ञानगच्छाधिपति श्रुतधर भगवंत की आज्ञा से आगमज्ञ पूज्य लक्ष्मीचन्दजी म. सा. को सुनाने की कृपा की। पूज्यश्री ने जहाँ कहीं भी आगमिक धारणा सम्बन्धी न्यूनाधिकता महसूस की वहाँ संशोधन करने का संकेत किया । अतः हमारा संघ पूज्य गुरु भगवन्तों का एवं धर्मप्रेमी, सुश्रावक श्रीमान् श्रीकांतजी गोलछा का हृदय से आभार व्यक्त करता है। तत्पश्चात् मैंने इसका अवलोकन किया ।
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इसके अनुवाद में भी संघ द्वारा प्रकाशित भगवती सूत्र के अनुवाद (मूल पाठ, कठिन शब्दार्थ, भावार्थ एवं विवेचन ) की शैली का अनुसरण किया गया है। यद्यपि इस आगम के अनुवाद में पूर्ण सतर्कता एवं सावधानी रखने के बावजूद विद्वान् पाठक बन्धुओं से निवेदन है कि जहाँ कहीं भी कोई त्रुटि, अशुद्धि आदि ध्यान में आवे वह हमें सूचित करने की कृपा
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