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हिंसे बाले मुसावाई, माइल्ले पिसुणे सढे ।
भुंजमाणे सुरं मंसं, सेयमेयं ति मण्णइ ॥६॥
मृषावादी, वाला, सढ़े :
कठिन शब्दार्थ - हिंसे - हिंसा करने वाला, बाले - मूर्ख, मुसावाई माइल्ले - मायावी छल कपट करने वाला, पिसुणे - पिशुन चुगली करने शठ धूर्त, भुंजमाणे - खाता हुआ, सुरं- मदिरा, मंसं मांस को, सेयं श्रेय - श्रेष्ठ, मण्णइ मानता है।
भावार्थ - हिंसा करने वाला, झूठ बोलने वाला, मायाचार का सेवन करने वाला, दूसरों के दोष प्रकट करने वाला, धूर्त, वह अज्ञानी जीव मदिरा मांस का सेवन करता हुआ 'यही कल्याणकारी है', इस प्रकार मानता है ।
विवेचन अकाम मरण को प्राप्त होने वाला मूर्ख - अज्ञानी जीव हिंसा करता हुआ, झूठ बोलता हुआ, छल कपट करता हुआ, चुगली करता हुआ, धूर्तता करता हुआ तथा मदिरा और मांस खाता हुआ भी अपने इन कुत्सित आचरणों को श्रेष्ठ समझता है । कायसा वयसा मत्ते, वित्ते गिद्धे य इत्थसु ।
दुहओ मलं संचिणइ, सिसुणागुव्व मट्टियं ॥ १०॥
मत्ते
कठिन शब्दार्थ कायसा काया से, वयसा वचन से, मत्त, वित्ते धन में, इत्थिसु - स्त्रियों में, दुहओ - दोनों प्रकार से, मलं कर्म मल को, संचिणइ - संचित करता है, सिसुणागो - शिशुनाग (अलसिया), व्व - जैसे, मट्टियं
व
मिट्टी को ।
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उत्तराध्ययन सूत्र - पांचवां अध्ययन
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भावार्थ काया से, वचन से और मन से मदान्ध बना हुआ तथा धन और स्त्रियों में आसक्त बना हुआ वह अज्ञानी दोनों प्रकार से रागद्वेषमयी बाह्य और आभ्यन्तर प्रवृत्तियों द्वारा कर्म - मल का संचय करता है, जैसे अलसिया मिट्टी खाता है और उसे शरीर पर भी लगाता है।. विवेचन - प्रस्तुत गाथा में अज्ञानी जीव की प्रवृत्ति का दिग्दर्शन कराया गया है। अबोध प्राणी अपनी शारीरिक, वाचिक और मानसिक प्रवृत्ति के द्वारा दोनों प्रकार से अर्थात् राग और द्वेष से कर्म मल को एकत्रित करता है जैसे शिशुनाग - अलसिया दोनों प्रकार से मुख और शरीर से मिट्टी ग्रहण करता है।
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