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अकाम मरणीय - विषयलोलुप पुरुषों की प्रवृत्ति
Akkkkkkkkkkkkkkkkkkxxxxkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk __भावार्थ - ये शब्दादि विषय-सुख हाथ में आये हुए - स्वाधीन हैं और जो भविष्यत्कालीनपरभव में प्राप्त होने वाले सुख हैं वे अनिश्चित काल के बाद प्राप्त होने वाले हैं और संदिग्ध हैं, क्योंकि कौन जानता है कि फिर परलोक है अथवा नहीं है? - विवेचन - प्रस्तुत गाथा में कामादि विषयों में अत्यंत आसक्ति रखने वाले पुरुष के स्वार्थ साधक विचारों का वर्णन किया गया है।
जणेण सद्धिं होक्खामि, इइ बाले पगब्भइ। कामभोगाणुराएणं, केसं संपडिवज्जइ॥७॥
कठिन शब्दार्थ - जणेण - लोगों के, सद्धिं - साथ, होक्खामि - रहूँगा, इइ - इस प्रकार, पगब्भइ - धृष्ठता करता है, कामभोगाणुराएणं - कामभोगों के प्रति अनुराग से, केसं - क्लेश को, संपडिवजइ - पाता है।
भावार्थ - ‘लोगों के साथ होगा अर्थात् सभी लोग शब्दादि सुख भोगते हैं, उनका जो हाल होगा वही मेरा भी होगा' इस प्रकार अज्ञानी जीव धृष्टता करता है। वह जीव काम भोगों में अनुराग रखने के कारण क्लेश - यहाँ और परभव में दुःख प्राप्त करता है।
विवेचन - विषयानुरागी पुरुषों को परलोक के अस्तित्व का ज्ञान हो जाने पर भी वे विषयों से विरक्त नहीं होते किन्तु अपनी जघन्य प्रवृत्ति का येन केन उपायेन समर्थन ही करते हैं।
विषयलोलुप पुरुषों की प्रवृत्ति ___तओ से दंडं समारभइ, तसेसु थावरेसु य।
अट्ठाए य अणट्ठाए, भूयगामं विहिंसइ॥८॥
कठिन शब्दार्थ - दंडं - दण्ड - हिंसा का, समारभइ - आरम्भ करता है, तसेसु - त्रसों में, थावरेसु - स्थावरों में, अट्ठाए - अर्थ के लिए, अणट्ठाए - अनर्थ के लिए, भूयगामं - प्राणी समूह का, विहिंसइ - हिंसा करता है।
भावार्थ - इस कारण वह त्रस और स्थावर प्राणियों में हिंसा का आरम्भ करता है। अपने और दूसरों के प्रयोजन से और निष्प्रयोजन ही प्राणियों की हिंसा करता है।
. विवेचन - प्रस्तुत गाथा में विषय कामना से प्रेरित हुए मनुष्य की हिंसक प्रवृत्ति का उल्लेख किया गया है। कामी - विषयी पुरुषों की हिंसक प्रवृत्ति में अर्थ-अनर्थ का जरा भी विचार नहीं होता है।
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