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द्वितीय वक्षस्कार - अवसर्पिणी का प्रथम आरक : सुषम-सुषमा ५१ *---------------------00-00-00-00-0-0-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-00-28-08-28-08-28-12-08हुए, अब्भ - बादल, गंडलेहा - कपोल पाली, णिडाल - ललाट, रयणियर- चंद्रमा (रजनीकर), उत्तमांग- मस्तक, सिरयाओ - केश, दीह - दीर्घ-लम्बे, वलि - झुरीं, ववगयव्यपगत-रहित, पलिय - श्वेत बाल, दोहग्ग - दुर्भाग्य, ओहस्सरा - ओघस्वर-गंभीर स्वर युक्त, छाया - प्रभा, गहणी - गुदाशय, पगइय - प्रकृति। ___ भावार्थ - हे भगवन्! उस काल में भरत क्षेत्र के मनुष्यों का आकार, भाव, स्वरूप किस प्रकार का बतलाया गया है?
हे गौतम! उस समय के मनुष्य बड़े मनोहर थे। उनके पैरों की रचना बड़ी सुंदर थी। ये कच्छप की ज्यों ऊँचे उठे हुए थे, यावत् उनके अंगोपांग उत्तम लक्षण, शुभ चिह्न आदि श्रेष्ठ गुणयुक्त थे। वे बड़े ही मनोरम और चेतःप्रसादक थे यावत् सुंदर रूप युक्त थे। .. हे भगवन्! उस समय भरत क्षेत्र में नारियों का आकार-प्रकार कैसा था?
हे गौतम! उस काल की नारियों की देह के सभी अंग सुंदर एवं सौष्ठव युक्त होते थे। उनमें उत्तम स्त्रियों के सभी गुण प्राप्त होते थे। उनके पैर बड़े ही सुन्दर, समुचित प्रमाण युक्त, सुकोमल, सुकुमार एवं कच्छप के आकार की ज्यों सुप्रतिष्ठित थे। उनके पैरों की अंगुलियाँ सीधी, कोमल, परिपुष्ट एवं सुसंगत थीं। अंगुलियों के नख समुन्नत, देखने में सुखप्रद, पतले तथा ताँबे के रंग के हलके लाल, निर्मल तथा चिकने थे। उनकी दोनों पिण्डलियाँ रोम रहित, . गोल, रमणीय संस्थान युक्त, उत्तम तथा प्रशस्त लक्षण युक्त, सुगूढ-मांसलता के कारण अभीप्सित थीं। उनके घुटने सुनिर्मित, सुंदर रूप में रचित, मांसल, सुदृढ़ स्नायु बंधन सहित थे। उनके उरू स्थल केले के तने जैसे आकार से भी अधिक मनोहर, घावों से रहित, परस्पर सटे हुए, समान प्रमाण युक्त, सुगठित, सुजात-स्वभावतः सुंदर रूप युक्त, गोलाकार, मांसल, अन्तर रहित थे। उनके श्रोणिप्रदेश द्यूतक्रीड़ा के काष्ठ फलक की ज्यों सुव्यवस्थित, परिपुष्ट, उत्तम, पृथक्पृथक्, स्थूल, शरीर के विस्तार के प्रमाण की दृष्टि से दुगुने विशाल, मांसल, सुगठित, जघन प्रदेश युक्त थे। उनकी देह के मध्य भाग हीरे के समान सुहावने, श्रेष्ठ लक्षण युक्त, विकृतबैडोल उदर रहित, तीन रेखाओं से युक्त, गोलाकृतिमय एवं तनुक या पतले थे। उनकी रोमराजि सरल, एक समान, सघन, उत्तम, पतले, काले, आदेय, लालित्य युक्त, सुरचित, सुविभक्तसुलझी हुई, कांतियुक्त, शोभामय, रुचिकर थी।
उनकी नाभि गंगा के भंवर की ज्यों वर्तुल, दाहिनी ओर चक्कर काटती हुई तरंगों की ज्यों घुमाव लिए हुए, सुंदर, उदीयमान सूर्य की किरणों से विकासोन्मुख कमलों के सदृश गंभीर एवं
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