________________
५०
जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww-n-0------------- ___ ते णं मणुआ ओहस्सरा, हंसस्सरा, कोंचस्सरा, णंदिस्सरा, णंदिघोसा, सीहस्सरा, सीहघोसा, सुस्सरा, सूसरणिग्योसा, छायाउज्जोवियंगमंगा, वज्जरिसहणारायसंघयणा, समचउरसंठाण संठिया, छविणिरायंका, अणुलोमवाउवेगा, कंकग्गहणी, कवोयपरिणामा, सउणिपोसपिटुतरोरुपरिणया, छद्धणुसहस्समूसिया।
तेसि णं मणुआणं बे छप्पण्णा पिट्टकरंडगसया पण्णत्ता समणाउओ! पउमुप्पलगंधसरिसणीसाससुरभिवयणा, ते णं मणुया पगईउवसंता, पगईपयणुकोहमाणमायालोभा, मिउमद्दवसंपण्णा, अल्लीणा, भद्दगा, विणीया, अप्पिच्छा, असण्णिहिसंचया, विडिमंतरपरिवसणा, जहिच्छियकामकामिणो। ___ शब्दार्थ - मणुईणं - नारियों का, पहाण - प्रधान-उत्तम, अइक्कंत - अत्यंत कांत, विसप्प - विस्तृत, माणमउया - समुचित प्रमाण युक्त, उज्जु - ऋतु-सीधी, मउय - मृदुल, लुसाह - ससंगत, अब्भुण्णय - अभ्युन्नत-ऊँची उठी हुई, तलिण - पतले, वट्ट - गोल, लट्ठ - सुश्लिष्ठ, अजहण्ण - उत्कृष्ट (अजघन्य), पसत्थ - प्रशस्त, अकोप्प - सर्वथा प्रिय, सुणिम्मिय - सुनिर्मित, कयली खंभाइरेक - केले के स्तंभ के आकार से भी अधिक सुंदर, णिव्वण - निव्रण-घावों के चिह्नों से रहित, अट्ठावय - अष्टापद-द्यूत क्रीड़ा का पट, सोणिओ - उरू स्थल के पृष्ठवर्ती परिपुष्ट अंग, पिहुल - पृथक्, वयण - शरीर, जहण - जघन प्रदेश, जच्च - जात्य-उत्तम, सहिअ - सघन-परस्पर मिले हुए, कसिण - काले, आइज्ज - आदेय-चाहने योग्य, लडह - लालित्य युक्त, रूइल - रुचिकर, णिरोदर - विकृत उदर रहित, तिवलि - तीन वलय-रेखाएँ, गंगावत्त - गंगानदी का जल भंवर, पयाहिणावत्त - दाहिनी और घूमती हुई (दक्षिणावर्त्त), भंगुर - सुंदर, बोहिय - विकसित होते हुए, वियड - विकट-गहरी, आकोसायंत - कमल कोश, अणुब्भड - अनुद्भट-अस्पष्ट, सण्णय - क्रमशः संकड़े, अकरंदुय - उपयुक्त आकार सहित, चुच्चु - स्तनाग्र, आमेलग - परस्पर मिले हुए, पओहराओ - पयोधर-स्तन, भुयंग - सर्प, अणुपुव्व - क्रमशः, गोपुच्छवट्टगाय के पूंछ की तरह गोल, णमिय - झुकी हुई, वक्ख - वक्ष स्थल, वत्थि - वस्तिप्रदेश, गल - गला, कपोल - गाल, कंबु - शंख, हणु- ठुड्डी, दगं - जलकण, कणवीर - कनेर, अजिम्ह - सीधे, पत्तल - पलक, भुमगाओ - भौंहे, आणामिय- आनामित-खींचे
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org