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________________ ४५८ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र शब्दार्थ - हिट्ठि - नीचे, अणु - हीन। भावार्थ - गाथाएं - (इस सूत्र में वर्णित विषयों का दो गाथाओं में सांकेतिक रूप में प्रतिपादन हुआ है।) चन्द्र तथा सूर्य के अधस्तन प्रदेशवर्ती, तारक मंडल का मेरु से ज्योतिष्चक्र के अंतर का, लोकांत एवं भूतल से ज्योतिष्चक्र के अन्तर नक्षत्र क्षेत्र की गति का ज्योतिष्चक्र के देवों के विमानों के संस्थान का, संख्या का, देवों द्वारा उनके वहन किए जाने का, देवों की शीघ्र-मंद आदि गति एवं स्वल्प बहुत वैभव का, ताराओं की परस्परिक दूरी का, चन्द्र आदि देवों की अग्र. महीषियों का, देवों की आभ्यंतर परिषदें, योग-सामर्थ्य आदि का ज्योतिष्क देवों के आयुष्य एवं उनके अल्प बहुत्व का विस्तार से आगे वर्णन है॥१-२॥ हे भगवन्! क्षेत्र की अपेक्षा से चन्द्र एवं सूर्य के नीचे के प्रदेश में विद्यमान, समश्रेणी में स्थित, उपरितन प्रदेशवर्ती तारा-विमानों के अधिष्ठायक देवों में से कई देव क्या उद्योत समृद्धि आदि में उनसे न्यून हैं, क्या कतिपय देव उनके समान हैं? हाँ गौतम! ऐसा ही है। ऊपर जैसा प्रश्न हुआ है, तदनुरूप ही उसका उत्तर है। हे भगवन्! ऐसा क्यों है? हे गौतम! पहले के भव में उन तारा विमानों के अधिष्ठायक देवों द्वारा किए गए तपश्चरण, नियमानुसरण एवं ब्रह्मचर्य सेवन जैसे साधना मूलक आचरण में जो न्यूनाधिक तारतम्य रहा है, तदनुसार उनमें द्युति, वैभव की अपेक्षा से इनमें चन्द्र आदि की तुलना में न्यूनता, तुल्यता है। अथवा पूर्वभव में उन देवों का तपश्चरण नियमानुसरण, ब्रह्मचर्य सेवन आदि उच्च या निम्न नहीं होते, तदनुसार उनमें उद्योत, वैभव आदि की दृष्टि से न उनसे हीन होते हैं और न तुलनीय हैं। चन्द्र परिवार (१९७) एगमेगस्स णं भंते! चंदस्स केवइया महग्गहा परिवारो केवइया णक्खत्ता परिवारो केवइयाओ तारागणकोडाकोडीओ पण्णत्ताओ? गोयमा! अट्ठासीइमहग्गहा परिवारो, अट्ठावीसं णक्खत्ता परिवारो, छावट्ठिसहस्साई णव सया पण्णत्तरा तारागणकोडाकोडीओ पण्णत्ताओ। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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