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सप्तम् वक्षस्कार - सूर्य-चन्द्र एवं तारागण
आषाढ़ का कितने नक्षत्र परिसमापन करते हैं?
हे भगवन् ! ग्रीष्मकाल के चतुर्थ मास हे गौतम! मूल, पूर्वाषाढ़ा एवं उत्तराषाढ़ा - ये तीन नक्षत्र उसका परिसमापन करते हैं।
मूल चवदह, पूर्वाषाढा पन्द्रह तथा उत्तराषाढा एक दिवस रात्रि का परिसमापन करते हैं। सूर्य तब गोलाकार, समचतुरस्त्र संस्थान युक्त, न्यग्रोध परिमंडल वट वृक्ष की तरह ऊपर से संपूर्णतः विस्तीर्ण, नीचे से संकीर्ण प्रकाश वस्तु के कलेवर के तुल्य आकृतिमय छाया से युक्त अनुपर्यटन करता है।
उस मास के अंतिम दिन पूरे दो पद प्रमाण युक्त पोरसी होती है ।
इनकी संग्राहिका गाथा इस प्रकार है - योग, देवता, तारे, गोत्र, संस्थान, चंद्र-सूर्य योग, कुल, पूर्णिमा, अमावस्या तथा छाया इनका वर्णन उपर्युक्त रूप में ज्ञातव्य है ।
सूर्य-चन्द्र एवं तारागण
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(१६६)
गाहा हिट्ठि ससिपरिवारो मंदर बाहा तहेव लोगंते । धरणितलाओ अबाहा अंतो बाहिं च उमुहे ॥ १ ॥ संठाणं च पमाणं वहति सीहगई इडिमंता य । तारंतरंऽग्गमहिसी तुडिय पहु ठिई य अप्पबहू ॥ २ ॥
अत्थि णं भंते! चंदिमसूरियाणं हिट्ठिपि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि समेवि तारारूवा अणुपि तुल्लावि उप्पिंपि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि?
हंता गोयमा ! तं चेव उच्चारेयव्वं ।
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से केणणं भंते! एवं वुच्चइ अत्थि णं० जहा जहा णं तेसिं देवाणं तवणियमबंभचेराई ऊसियाइं भवंति तहा तहा णं तेसि णं देवाणं एवं पण्णायए, तंजा - अणुते वा तुल्लत्ते वा, जहा जहा णं तेसिं देवाणं तवणियमबंभचेराई णो ऊसियाइं भवंति तहा तहा णं तेसिं देवाणं एवं णो पण्णायए, तंजहा - अणुत्ते वा तुल्लत्ते वा ।
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