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________________ ४३८ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र *-02-10-02-08-00-00-00-00-19--10-19-10-100-00-00-00-00-12-2-8-10-0-0-00-00-00-00-00-00-00-09-19-10-19-10-08-08-00-00-00 सव्वबाहिरए मंडले जोयं जोइंसु वा ३, तत्थ णं जे ते णक्खत्ते जे णं सया चंदस्स पमइं० जोएइ सा णं एगा जेट्ठा इति। शब्दार्थ - पमइंपि - प्रमर्दितकर - चीरकर। भावार्थ - हे भगवन्! इन अट्ठाईस नक्षत्रों में कितने ऐसे नक्षत्र हैं, जो सदैव चन्द्रमा क दक्षिण दिशा में स्थित होते हुए, इनके साथ योग करते हैं? कितने नक्षत्र ऐसे हैं, जो सदा चन्द्रमा के उत्तर में स्थित होते हुए इससे योग करते हैं? कितने नक्षत्र ऐसे हैं, जो चन्द्रमा के दक्षिण में भी एवं उत्तर में भी नक्षत्र विमानों को चीर कर योग करते हैं। कितने नक्षत्र ऐसे हैं, चन्द्रमा के दक्षिण में नक्षत्र विमानों को चीर कर चन्द्रमा से योग करते हैं? ... हे गौतम! इन २८ नक्षत्रों में से जो नक्षत्र सदा चन्द्रमा के दक्षिण में स्थित होते हुए योग करते हैं, वे छह हैं - १. मृगशिरा २. आर्द्रा ३. पुष्य ४. अश्लेषा ५. हस्त ६. मूल। चन्द्र संबंधी मंडलों के बाहर से ही ये छह नक्षत्र योग करते हैं। अट्ठाईस नक्षत्रों में जो नक्षत्र सदा चन्द्रमा के उत्तर में स्थित होते हैं, वे बारह हैं - १. अभिजित २. श्रवण ३. धनिष्ठा ४. शतभिषक ५. पर्वाभाद्रपदा ६. उत्तरभाद्रपदा ७. रेवती ८. अश्विनी ६. भरणी १०. पूर्वाफाल्गुनी ११. उत्तराफाल्गुनी और १२. स्वाति। ___ अट्ठाईस नक्षत्रों में जो नक्षत्र नित्य चन्द्रमा के दक्षिण में भी तथा उत्तर में भी नक्षत्र विमानों को प्रमर्दित कर चन्द्र के साथ योग करते हैं, वे सात हैं - १. कृत्तिका २. रोहिणी ३. पुनर्वसु ४. मघा ५. चित्रा ६. विशाखा और ७. अनुराधा। ___इन नक्षत्रों में से जो सदा चन्द्रमा के दक्षिण में नक्षत्र विमानों को चीर कर उससे योग करते हैं, वे पूर्वाषाढ़ा तथा उत्तराषाढ़ा के रूप में दो हैं। ये दोनों सदैव सर्व बाह्य मंडल में स्थित होते हुए चन्द्रमा के साथ योग करते हैं। इन नक्षत्रों में से जो सदा नक्षत्र विमानों को चीर कर चन्द्र से योग करता है, वह ज्येष्ठा नक्षत्र है। नक्षत्रों के देवता (१९०) एएसि णं भंते! अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं अभिई णक्खत्ते किंदेवयाए पण्णत्ते? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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