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________________ ४१७ सप्तम् वक्षस्कार - चन्द्र-मुहूर्त गति ते............... हे गौतम! इसका आयाम-विस्तार १००६६० योजन एवं परिधि ३१८३१५ योजन निरूपित ६१ हे भगवन्! द्वितीय बाह्य चन्द्रमंडल का आयाम-विस्तार तथा परिधि कितनी कही गई है? हे गौतम! इसका आयाम-विस्तार १९०५८७ ६. योजन तथा इकसठ भागों में विभक्त एक योजन के एक भाग के सात भागों में से छह भाग योजनांश एवं उसकी परिधि ३१८०८५ योजन कही गई है। हे भगवन्! तृतीय बाह्य चंद्रमंडल का आयाम-विस्तार एवं परिधि कितनी प्रतिपादित हुई है? हे गौतम! तृतीय बाह्य मंडल का आयाम-विस्तार १००५१४ , योजन तथा इकसठ भागों में बंटे हुए एक योजन के एक भाग के सात भागों में से पांच भाग योजनांश एवं उसकी परिधि ३१७८५५ योजन कही गई है। इस क्रमानुसार प्रवेश करता हुआ चन्द्र पूर्वमंडल से उत्तर मंडल को संक्रांत करता हुआ प्रत्येक मंडल पर ७२० योजन एवं इकसठ भागों में बंटे हुए एक योजन के एक भाग के सात भागों में से एक भाग योजनांश विस्तार वृद्धि कम करता हुआ तथा २३० योजन परिधि वृद्धि कम करता हुआ सर्वाभ्यंतर मंडल को उपसंक्रांत कर गति करता है। , चन्द्र-मुहूर्त गति (१८१) जया णं भंते! चंदे सव्वब्भंतरमण्डलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं एगमेगेणं मुहुत्तेणं केवइयं खेत्तं गच्छइ? गोयमा! पंच जोयणसहस्साइं तेवत्तरिं च जोयणाई सत्तत्तरिं च चोयाले भागसए गच्छइ मण्डलं तेरसहिं सहस्सेहिं सत्तहि य पणवीसेहिं सएहिं छेत्ता इति, तया णं इहगयस्स मणूसस्स सीयालीसाए जोयणसहस्सेहिं दोहि य तेवढेहिं जोयणसएहिं एगवीसाए य सट्ठिभाएहिं जोयणस्स चंदे चक्खुप्फासं हव्वमागच्छइ। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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