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________________ ४१६ • जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र __गोयमा! एगं जोयणसयसहस्सं पंच य चउदसुत्तरे जोयणसए एगूणवीसं च एगसट्ठिभाए जोयणस्स एगसट्ठिभागं च सत्तहा छत्ता पंच चुण्णियाभाए आयामविक्खम्भेणं तिण्णि य जोयणसयसहस्साई सत्तरस सहस्साइं अट्ट य पणपण्णे जोयणसए परिक्खेवेणं। . एवं खलु एएणं उवाएणं पविसमाणे चंदें जाव संकममाणे २ बावत्तरि २ जोयणाई एगावण्णं च एगसहिभाए जोयणस्स एगसट्ठिभागं च सत्तहा छेत्ता एगं चुण्णियामागं एगमेगे मण्डले विक्खम्भवुद्धिं णिवुड्डेमाणे २ दो दो तीसाइं जोयणसयाइं परिरयवुद्धिं णिवुड्डेमाणे २ सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ। भावार्थ - हे भगवन्! सर्वाभ्यंतर चन्द्रमंडल का आयाम-विस्तार तथा परिधि कितनी कही गई है? हे गौतम! इसका आयाम - विस्तार ६६६४० योजन एवं उसकी परिधि ३१५०८६ योजन से कुछ अधिक बतलाई गई है। हे भगवन्! द्वितीय आभ्यंतर चन्द्रमंडल का आयाम-विस्तार तथा परिधि कितनी कही गई है? हे गौतम! द्वितीय आभ्यंतर चन्द्रमंडल का आयाम-विस्तार ६६७१२. योजन तथा इकसठ भागों में बंटे हुए एक योजन के एक भाग के सात भागों में से एक भाग योजनांश एवं उसकी परिधि ३१५३१६ योजन से कुछ ज्यादा कही गई है। हे भगवन्! तृतीय आभ्यंतर मंडल का आयाम-विस्तार तथा परिधि कितनी आख्यात हुई है? हे गौतम! इसका आयाम-विस्तार ६६७८५० योजन तथा इकसठ भागों में बंटे हुए एक योजन के एक भाग के सात भागों में से दो भाग योजनांश तथा उसकी परिधि ३१५५४६ योजन से कुछ ज्यादा आख्यात हुई है। इस क्रम के अनुसार निष्क्रमण करता हुआ चन्द्र प्रत्येक मंडल पर ७२० योजन तथा इकसठ भागों में बंटे हुए एक योजन के एक भाग के सात भागों में एक भाग योजनांश विस्तार वृद्धि करता हुआ सर्वबाह्य मंडल को उपसंक्रांत करता है। हे भगवन्! सर्वबाह्य चन्द्रमंडल का आयाम-विस्तार एवं परिधि कितनी निरूपित हुई है? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004179
Book TitleJambudwip Pragnapti Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size9 MB
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