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सप्तम् वक्षस्कार
लेश्या - प्रभाव एवं सूर्य दर्शन
१
के योजन प्रमाण यावत् लवण समुद्र के विस्तार के
६
इसका संस्थान गाड़ी की धुरी के आगे के हिस्से - नेमा के समान है ।
हे भगवन्! तब अंधकार की स्थिति का संस्थान कैसा होता है?
हे गौतम! अंधकार की स्थिति का संस्थान ऊर्ध्वमुखी कदंब के फूल के सदृश होता है । वह भीतर से संकड़ी बाहर से चौड़ी यावत् उसका आगे का वर्णन पूर्ववत् है ।
६
उसकी सर्वाभ्यंतर बाहा की परिधि मेरु पर्वत के अंत में ६३२४- योजन परिमित है।
१०
भाग का योग ताप क्षेत्र की लम्बाई है।
हे भगवन् ! परिधि का यह परिमाण किस प्रकार है ? हे गौतम! मेरु पर्वत की परिधि को दो से गुणित किया जाय, गुणनफल को दस से विभाजित किया जाय, उसका भागफल उस परिधि का परिमाण है ।
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६
उसकी सर्वबाह्य बाह्य की परिधि लवण समुद्र के अंत में ६३२४५ - हे भगवन् ! परिधि का यह परिमाण कैसे है?
१०
हे गौतम! जंबूद्वीप की परिधि को दो से गुणित किया जाय यावत् शेष पूर्ववत् है ।
हे भगवन्! तब अंधकार क्षेत्र का आयाम कितना कहा गया है ?
हे गौतम! उसका आयाम ७८३३३ 9 योजन बतलाया गया है । .
३
हे भगवन् ! जब सूर्य सर्वबाह्य मंडल को उपसंक्रांत कर गति करता है तो तापक्षेत्र का संस्थान कैसा होता है?
हे गौतम! उसका संस्थान ऊर्ध्वमुखी कदंब के पुष्प जैसा होता है। बाकी का वर्णन पहले की तरह ग्राह्य है । इतना अंतर है- अंधकार संस्थिति का जो पूर्ववर्णित परिमाण है, ताप-क्षेत्र का परिमाण भी वैसा ही है जो ताप क्षेत्र का पूर्ववर्णित परिमाण है, वही अंधकार संस्थिति का जानना चाहिए।
लेश्या - प्रभाव एवं सूर्य दर्शन
(१६)
योजन है।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे सूरिया उग्गमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति मज्झतियमुहुत्तंसि मूले य दूरे य दीसंति अत्थमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति ?
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